शनिवार, 28 सितंबर 2013

घोड़ा और घास

सबकी कबकी आस सहज सरल जीवन हो पास !
जटिलता त्यागे करे न हम मानवता का ह्रास !!
अनजाने जाने जीवन  हर थल हो बिना त्रास  !
हम न बने कही घोड़ा कही पर न बने कोई घास !!१!!
जाति-वर्ग धर्म -सम्प्रदाय या जो भी हो बाधा !
दधीचि सा त्यागी बन हम दे दे उसको काधा !!
घोड़े सा चर चर चंचल मन करता नित आधा !
जन घास मन घोड़ा छोडो हो जाय सब साधा !!२!!
घोड़े सा है आतुर चरने को मानव मानव घास !
सत्ता शासन शासक की प्रभुता रखते जब पास !!
हो अभय  ये शनि राहू केतु सा लिए मन आस !
पावस पवन मेघ आप बूद से जरते जू जवास !!३!!
कौन है घोड़ा कौन है घास घोड़े घास का विश्वास !
घोडे घास की यारी हो तब तो फैलेगी घास ही घास !!
घास घोड़ा हो जाय जो और हो जाय जब घोड़ा घास  !
तो छोड़ देगा चरना घास घोड़े को यह कैसे विश्वास !!४!!
युग धर्म यही युग कर्म यही युग युग से हैं सब त्रस्त !
तोड़ना ही हो समाधान तब हमें इसमें होना है व्यस्त !!
सब तरफ सुख शान्ति हो हो सभी इस से विश्वस्त  !
जन जन जब जाग जाय तब घासी घोड़े होगे ही पस्त !!५!!

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ