सोमवार, 30 सितंबर 2013

सत्कर्मी ही सफलता को बरे

करम पथ सूल सा पथिक दुकूल सा उलझा !
जो जोड़ तोड़ मोड़ मरोड़ काट छाट में मजा !!
दिखे निश्चित सब तरह से सुलझा  सुलझा !
कलि काल प्रकृति सह रचता मजा की सजा !!१!!
दो बात है स्वकर्म रत विरत कर्म पथिक से !
जब सास तब आस लगाए रहे वे प्रकृति से !!
भ्रमजाल सुलझा मत उलझ स्वयं अमूल से !
 न होता अन्याय कभी इस धरा पर प्रकृति से !!२!!
सास आस आधार जीवन का जगती ताल में !
खुशबू बदबू का संज्ञान सास ले लेती पल में !!
डूबते को तिनका सहारा जब सास जेहन में !
डूब कर डूबो गए डूब गए कितने इस जहा में !!३!!
प्रायोजित आयोजित अप्रत्यासित योजना !
सफल थे कालकेतु तपीस कुत्सित योजना !!
केकी कंठ अहि सा निगले नित नव योजना !
नथने में रत कालीनाग सा है प्रकृति योजना !!४!!
केकी कंठी गुमराह करमी को करम पथ से करे !
आन मान प्रतिमान पर जो पग सदा आगे धरे !!
तपी कालनेमी जती रावन पूरन आस को बिफरे !
पर पर कटे खलो के सत्कर्मी ही सफलता को बरे !!५!!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें