रविवार, 8 सितंबर 2013

हारे का हरि नाम

व्यथा कथा बन जाती सबकी,
जोर जवानी जब माने मन की!
ताने बाने जब बने हो तन की ,
तब क्या कहना उस जन की !!१!!
नहीं नीति नहीं सदाचरन ,
फलते फूलते हैं  कदाचरन !
सुरुचि का करता ध्यान धरन ,
देखता सुनीति का पल पल मरन !!२!!
माया बस जब शिव चतुरानन ,
कहा ठहरता तब तुच्छ मानव मन !
जोगि जती मुनि मन मनभावन ,
करते हैं अपावन को पावन !!३!!
उनकी याद न आती बली को ,
अहंकार स्वबल का छली को !
कुकर्म मद मस्त करे मली को ,
च्युत कदाचरन करे काली कली को !!४!!
हार हर हाल हरदम हमसफ़र हो,
हरि-हर हरावे तरसावे तार तार तरी हो !
मन-मानस मलिनता ही जब मूर्ति हो ,
सूख जाय काटा सा काटों की गति हो !!५!!
तब आयेगी आयेगी याद हरि नाम की ,
रुलायेगी याद उसको स्वयं काले काम की !
हो धाराशाही कहेगा कथा विधि वाम की ,
जब नहीं चलेगा कर्म पथ पर राम की !!६!!
जाये चाहें जहां आये न कोई काम ,
मुक्ति मिले न उसे जाये जिस धाम !
सच सुख शान्ति स्वनीड ही हो हर शाम,
जप रे मना हरि हरि है हारे का हरि नाम !!७!! 

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