मंगलवार, 10 सितंबर 2013

शिकारी और शिकार

सिकवा सिकता सा सदा सोहे स्व स्वपरिवार !
तना तनी से केतु राहू सा बदता है नित रार !!
जब जाय जती जू जतावे जातरू सू सब सार !
तब होते सब कालनेमी सा शिकारी ही शिकार !!१!!
बंद मुठ्ठी से सरक सिकता सिखावे नित ज्ञान !
सिकवा को बना सिकता करे हम सच का भान !!
सरकता नित सिकता जू सब आन बान शान !
नहीं कर पाया कोई शिकारी- शिकार पहचान !!२!!
शिकारी भी हो जाता शिकार बिखर कर तार तार !
छोटे मोटे शिकार पा जब पर मान धन पर करे प्रहार !!
क्षणिक सुख शान्ति ईमान मान बेच जब करे व्यवहार  !
तब बून रहा नित नाश-जाल होने को निज ही शिकार !!३!!
अनाथन के नाथ बन जो करे छल कपट का व्यवहार !
चंड मुंड रक्तबीज सा हो भले होता उसका भी संहार !!
आख वाले अंधे बन करते हैं जब सब मिथ्याचार !
तब कठिन है समझना कौन शिकारी कौन शिकार !!४!!

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