शनिवार, 21 सितंबर 2013

पञ्च दोहे

देखे दूरंगी रेख ,दुनिया दोहरि दौर !
नित पर सुख दुःख ही पेख ,त्यागे खुद निज ठौर !!१!!
काम दुर काम बस भूत ,लगन लगे व्यविचार !
कामाचारी का कूत ,बचा ले सदाचार !!२!!
कब बचेगा सदाचार ,जब सारे है चोर !
हर मन मिटा कदाचार ,हो स्वकर्म ही ठोर !!३!!
चोर गिने गिनाये सब ,पर गनकू भी चोर !
अंग बेअंग सभी अब ,करे इसी पर जोर !!४!!
समय काम धरम चोरी ,जाने सब अधिकार !
सब कुछ हो सहज मोरी ,याद नहीं निज कार !!५!!
         

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