सोमवार, 8 जुलाई 2013

मानव

मानव दानव सा करे जब आहार विहार !
हो जिस साधन से भरा उससे पाये हार !!१!!
रचता स्वयं नाश जाल होती ताकत पास !
सोचता विकास जिसको वही करता विनास !!२!!
समझ चतुर बन गया ठग ठग अपनो को रोज !
समय समेटे सकल सुख मिट जाये सब मौज !!३!!
स्व को सदा सम समझ जो असत से कर अर्जन !
भरे स्व स्वजनों का सब करे सबका तर्पन !!४!!
फूले फले जवास सा चूस चूस पर सार
पड़ते ही पावस बूद हो जाय तार तार !!५!!
दुहरी चाल पल पल चल चमक सकते कुछ पल!
दुधारी बन यह करनी करेगी विनास कल !!६!!
सुख शान्ति छिन जन स्वजन अपरजन या द्विजन !
मिले दुःख दैन्य व अशांति तुम्हे इसी जीवन !!७!!
लूट की ललक से लपक दे कोरा ही वचन
टूटे लुटे लाल लाल हो तेरा अधोपतन !!८!!
भक्षण इंसानियत का नित बन संसार से विरत !
जैसे भक्षण परिजन की करता बगुला भगत !!९!!
घात प्रतिघात है क्या विश्वासघात पाप !
सो कहते बचोगे रे आस्तीन का साप !!१०!!
कुपथ से विकास चाहत बनाती हे दानव!
सुपथ से सुदृढ़ ही सदा रहे हरदम मानव !!१०!!

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