बुधवार, 8 मई 2013

चिन्तन

चिन्तन से चिता में जात जन मन समझो,
आतुर दिन रात जिस हेतु मारन-मरन!
ईश्वर की रचायी माया इनसे भगाये,
उलझाये संसारी विषय मे धरते चरन!!
राग पैदा कर तन- मन में रचाये इन्हें,
सेवन असेवन दोउ हाल में कर जतन!
मेरी हो जाय सारी भोग्या बस यही कामना,
नचाये कठपुतली सा और कारन कवन!!१!!
शुरुवात काम क्रोध लोभ ममता की यह,
कामी हो असफल बिचारने में सत- असत!
बाधा कामना की भडकावे क्रोध को,
कहे करे सब निकृष्ट जो इसमें बरत!!
लालच बनावे सुजन को भी ठग मानव,
सत असत धर्माधर्म भूल सबको ठगत!
मोह ममता का बिगाडे समभाव नर का,
करवावे पक्षपात बनावे बगुला भगत!!२!!
अभिमानी स्वरुप वय गुण गन गान का,
रज तम त्याग सनकी बन पावे सनक!
मारग अपनावे बिचलो सुख- शान्ति छोड,
बुलावे क्रोध नीति न्याय विरुद्ध राग की भनक!!
लोभी मोही कामी स्वार्थी सुखभोगी इन्सान,
अभिमान से ही क्रोधी बने तुनक तुनक!
मूरख सा याद नाश करे विनाश सबका,
पा पाकर अपने मोह माया की एक झलक!!३!!
कामी को पियारी नारी उसकी कामी कामना,
लोभ जब हो धन मान की तोड देती कमर!
विषयी विषय विकार विनाश कर नित,
मुक्त मृग-तृष्णा से ईश कृपा से तर बतर!!
चिन्तन चिता से मोड मुख चलो कर्म पथ,
प्रेममय सुमन शोभित सामने सरवर!
लगा डुबकी प्रेम-सरवर बन सबका,
जमकर जीत जावो जगत में हर समर!!४!!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें