रविवार, 14 अप्रैल 2013

समय

समय पर हम जब करते जतन!
पुलकित हो जावे हमारा तन व मन!!
चुकते ही एक क्षण होवे हाल बेहाल!
जैसे अवसर चुके डोगरी नाचे ताल बेताल!!
ज्वार भाटा सा यह नही करता इन्तजार!
आप इसके इन्तजार मे चाहे हो जाये तार तार!!
कहते है ये तो टाइम टाइम की बात!
सीधा है अर्थ इसका टाइम की है शुरुवात!!
जन जीवन का समय दिन रात से!
कलरव का समय शाम प्रभात से!!
सुप्रभात से हो शुभारम्भ जब समय का!
सुधरे स्वयं सुधारे भाग्य जन जन का!!१!!
समय के चुकते ही रीता हो हाथ!
फिर काम न आये किसी का साथ!!
सुधीजन कहते  यही बात बार बार!
समय पर ही करो गरम लोहे पर वार!!
यह बात बताना क्यो जब सब जानते है!
क्योकि हम इसे व्यवहार मे नहि आनते है!!
टाइम टेन्स बन काल हो जाता!
जो किसी को कभी नही है भाता!!
गुनगुनाते भौरे चहचहाती चिडियां!
लहलहाते खेत खिलती कलियां!!
स्वचेतना से स्वमेव होता यह  कब!
पलन होता समय चक्र का चक्र जब!!२!!
समय सुहावन मन भावन स्व के समय पर!
स्व समय की अनुकूलता प्रतिकूलता की रुचिता पर!!
वही नदिया वही झरने वही गिरि बन का चमन!
थपेडे खा खाकर समय का देते सुख शान्ति-सुमन!!
पर उनके ही दामन में हमे मिलती अशान्ति!
खो देते समय की मार से जब वे अपनी कान्ति!!
करते जीव जन्तु जगत जंगल मेंसमय भोग!
इसका ही सदुपयोग दुरुपयोग बनाता सबका योग संयोग!!
समय को किल करना नही है केवल हत्या!
विजय पाता वही इस पर माने इसे जो आत्महत्या!!
विजयी होता जन वही समय पथ पर जो आगे चलता!
मुठ्ठी मे होता यह उसके जो समय-पिच पर सदा रमता!!३!
समय पर जगो सोओ निज कर्म पर आगे बढो!
दुर्गम शैल गिरि पथ कार्य -रथ पर निज चिह्न मढो!!
अग्रसोची अग्रकर्मा बन इसकी इज्जत करो!
समय की नव समय पर चला जग-जलधि तरो!!
अन्यथा चक्रावात झंझावात है तैयार इस जग में!
ऐसे कोटिक दुर्निवार लगे है नैया को डुबोने में!! 
समय पर चेत रे जन चेत जल्दी चेत!
मत हो तू संसार-समर में असमय ही खेत!!
समय की चेतना ही भरेगी समय रहते प्राण-वायु!
मजबूत हो सारे तन्त्र तेरे बन स्वचेतन स्नायु!!
मत कर गुमान बिना विजयी बने समय पर!
प्रहार करो रख रुचि स्वविकास हेतु पहर पहर पर!!४!!

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