बुधवार, 7 अक्तूबर 2015

स्वानुभूति गतांक से आगे||1||

पारिवारिक सम विषम परिस्थितियों मे मैं आया था।जीवन के प्रारम्भिक दौर की यादे तकलीफदेह एवं रोमांचक हैं।पिताजी अत्यन्त अल्प शिक्षा प्राप्त सुदामा सरीखे भक्त एवं आर्थिक रूप से निम्न वर्गीय श्रेणी के  खेतिहर किसान ब्राह्मण रहे।उस समय घाघ कवि की कहावत उत्तम खेती मध्यम बान निम्न चाकरी भीख निदान को मानने वाले पिताश्री नौकरी को लात मारकर उत्तम खेती में लग गए ।निर्बल के बल राम।असमय में सभी अपनों ने साथ त्याग दिया पिताश्री घोठे पर आकर अपनी  कच्ची मकान रहने योग्य बना लिये।जमीन आधी रह गयी।पिताश्री पढ़ाई का महत्व उस समय ही जान गये थे हमें पढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा।फिर भी पारिवारिक परिस्थिति का प्रभाव या किस्मत बड़े भाई साहब का अध्ययन बाधित।दूसरे भाई साहब ने परिस्थितियों से जूझते बी ए, बी एड कर लिया।तीसरे भी समय,परिस्थिति और किस्मत का शिकार बारहवी से आगे न बढ़ सके।पूर्णतः ग्रामीण इलाका दूर-दूर तक शहर नहीं।आज की तरह गाँव-गाँव,गली-गली स्कूल नहीँ अनगिनत दसवीं,बारहवीं से आगे नहीं बढ़ पाते।पारिवारिक,आर्थिक,सामाजिक,व्यवहारिक और भौतिक कारणों पर माता-पिता और भाइयों तथा बहनों के प्यार व उत्साह से विजय प्राप्त करते हुवे मैंअपने अध्ययन पथ पर आगे बढ़ता रहा।मेरे पिताश्री ईमानदारी की मूरत, मजबूर और गरीब के दुःख में दुखी होने वाले संवेदनशील ,सर्वहितरत, धार्मिक एवं सादा जीवन जीने वाले रहे।अतः मैं
अक्षरसःइस बात में विश्वास करता हूँ कि बाढ़े पूत पिता के धर्मे, खेती बाढ़े अपने कर्मे।
                                     क्रमशः

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें