गुरुवार, 2 अप्रैल 2015

होगी जय मानवता की जन मन कह रहा है

राम नाम की कृपा छाव सब निधि का ठाव।
जड़ चेतन में मानव रखे करतार सम भाव।
कोयल कूक प्यारी है कौवा करे काव काव।
न्यारे न्यारे रूप रंग ढंग इन्सा फैलाये पाव।
गुन दोष मय मानव पर पर में ही पेखे दोष।
शुद्ध सात्विक सद्कर्मी मैं शेष सब सदोष।
हर शान मान पर पर काट बन जा निर्दोष।
लपके झपके तड़के भड़के मैं मैं में मदहोश
विश्व किन्ह करतार भूल जन माने निजको
मानवता नैतिकता पट फाड़ पहने मयको।।
दे अंक शतप्रतिशत सद असद स्वकर्मको।
योगी यती भेष धर बंचक पूजवाते स्वयंको
संत हंस जन हैं इस जहां को स्वर्ग बनाते।
दुःख कातर जन तन मनसे परकष्ट मिटाते
गुन गाहक जन गन से हैं अवगुन हटाते।
पय पा बिकार मिटा गुन गहन कर जाते।।
इस दुनिया में जहाँ तक नजर आ रहा है।
किसी को दिखावा किसी को सद भा रहाहै
इंसानियत जवां हो मानव मन भा रहा है।
होगी जय मानवता की जन मन कह रहा है

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