मंगलवार, 26 मई 2015

प्रश्न

हर क्षेत्र विकास भाल चूमे प्रश्न कर्ता का।
पथ दर्शक हैं रवि चन्द्र निज पथ भर्ता का।
सहज सरल प्रश्न उलझ जाते हैं जहाँ।
कठिन जटिल प्रश्न सुलझ जाते हैं वहाँ।।
जीवन पथ प्रश्न रथ सवार जन इस जहाँ।
लक्ष्य फल कर्म बल तोड़ लाते सदा यहाँ।।
ज्ञानी अज्ञानी अज्ञानी ज्ञानी हो जाते कब।
ज्ञात अज्ञात प्रश्नजात नवगति पाते जब।।
जीवन पथ तुतलाते हकलाते आगे बढ़ते।
बक बक कर सम्भावनागत मार्ग पा जाते।।
सीधी सी साधी सी सौंधी सी सत सवाल।
तीखी मिर्ची सी मचा देती है बहुत बवाल।।
सिंहासन हिला प्रश्न कही रचते इतिहास।
कराते हैं ये वही जन मन मन्दिर निवास।।
सोते जागते उठते बैठते हिलते डुलते प्रश्न
मानव संग जटिल जीवन जीते हैं प्रश्न।।
प्रश्न पर चढ़ मूढ़ व्यमूढ़ बन जाय साथी।
पर हल पा निज प्रश्नों का होते महारथी।।
क्या क्यों कैसे उलझा दे ऐसे  तैसे नित।
वाह ये कैसे जीवन तार सुलझाये जित।।
कहाँ कब कौन जब तोड़तें निज मौन।
ठौर ठौर गौर गौर हल होते कौन कौन।।
साहित्य सेवा जनसेवा निज मेवा हित।
प्रश्नों का लगाना ही होगा झड़ी नित।।
किसका किसकी किसके इसके उसके।
पाव पीछे न कभी किसी भय से खिसके।।
आश्रय अमित का मनोरम मनोबल ये।
नवजात जात जीवन का बलधाम हैं ये।।
यक्ष भी ये रक्ष भी ये समक्ष भी हैं ये।
समर्थ जन हेतु सहज सरल साध्य ये।।
समस्या समाधान सावधान से सवाल।
सज्जन साधुजन सदसमागम से सुहाल।।
बिन्दु-सिन्धु हैं प्रश्न विचारे।
मति गति सुरति कहत रत नारे।।
श्रोता-वक्ता ज्ञानी सहारे।
सूरज प्रश्न अज्ञान घन वारे।।

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