नत बेचें ईमान
सुरुचि सुनीति उत्तानपाद प्रेम-पाश बाधे।
रुचि-नीति मध्य राज काज जन अवराधे।।
मनभोग मनभर स्वाद हीको मान पोषक।
रुचि रसना स्वशोषक कोही माने तोषक।।
नीति अदम्य अपराजेय अडिग अनन्य।
पालक जन स्व सहित सबको करे धन्य।।
ध्रुव पथ पग की गरिमा राग-रोष हटकर।
सुकाम वाचक-प्रचारक गाथा गा सटकर।।
आज देश दोजख-स्वर्ग बिच झूले झूलना।
अनन्त दल अनन्त में सिखाते हैं जूझना।।
आम जन पक्ष-विपक्ष बिच बना हैं त्रिशंकू।
कुँवा-खाई आगे-पीछे करे काहू को कलंकू।।
साहसिक कदम उठा सिय-राम जग जान।
ईश्वर अंश जीव तो हर जन को सम मान ।।
क्रन्तिकारी कार्य से जो रखे सबका आन।
घिसे पिटे पथ पाटे जो उस पर सीना तान।।
गुन गाहक हो हम हरदम करे गुनी गन गान।
निज नयन नाना नावों नत नत बेचें ईमान।।
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