रविवार, 31 मई 2015

मनमाफिक फल लेते धीर वीर

परित हरित मणि पाने को हम
कल्पित करते पन्थ अनेक।
आशा प्रत्याशा के बन्धन बध
लक्ष्य बदलते प्रतिपल भेक।।
हर हार जित से बोझिल जन मन
भूल जाय बिधि अमिट लेख।
शाम सा ढलते रहते उलझ उलझ
जीवन मेले के नित नव खेल।।
छोटी मोटी असफलताओं से सूरमा
स्वं वा स्वजन को क्यों कोस।
असफलता बड़ी सफलता द्योतक भी
जह तालमेल हो जोश होश।।
पद प्रतिष्ठा परिणाम प्रबल परमात्मा पूरे
कर्तव्य पथ ही जब हो लगन।
तू ईश अंश चित सबल मन बड़ा कदम
तब सफलता दासी चूमे चरन।।
भूत भूल वर्तमान बल भविष्य बना वीर
पीड़ा जो भूत से उसे  दो चीर।
मन मसोज स्व पर कोसते केवल कायर
मनमाफिक फल लेते धीर वीर।।
कमठ पीठ सा कर दिल दिमाग मजबूत
जल थल नभ गामी बहुआयामी।
निज प्रतिभा ही है अनमोल मणि जग में
मणि किरण बल बन सदपथगामी।।
चित शांत सदा कदम प्रतिष्ठित पथ पर
ध्वज फहरे लहरे हर पल।
गम समन सदा कर्म धर्म वर्म के मर्म पर
निज परचम चमके हर थल।।
होता वही जो होना है
परिणाम खरा सोना है।
कहते कहते कायर है
मार्ग बनाते सायर हैं।।

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