संवत दो हजार बहत्तर कीलक अभिधानी।
नूतन नव संवत्सर बने जन जन सन्मानी।
संवत दो हजार बहत्तर कीलक अभिधानी।
राग द्वेष से दूर यती सा हम हो स्वाभिमानी
सद लक्ष्य प्राप्ति हित बने बगुला जू ध्यानी।
असद त्याग सब सद पाये गाये गुन ज्ञानी।
चहु दिशि कीर्ति पतंग बन जाय जन मानी।
निशि वासर करे कृपा मइया अम्बे भवानी।
दे दीनानाथ दीनबन्धु दयानाथ दयादानी।।
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]
<< मुख्यपृष्ठ