रविवार, 15 मार्च 2015

निखर जा ज्ञान मान पंकज जूभारत-पुष्कर

बंदौ गुरु पद कंज नित नव ज्ञान संवाहक।
देश काल गुन धर्मसे हुवे अध्यापकशिक्षक
वैदिक लौकिक काल विशाला।
परिवर्तन प्रकृति अंग कहाला।।
चार पदारथ करतल वाके।
नामी बने जो शिक्षा पाके।।
विश्व गुरु हम थे बन जावे।
शिक्षक शिक्षार्थी जोर लगावे।।
गाव शहर नित अलख जगावे।
अशिक्षा रोग को  हम मिटावे।।
शिक्षा मातु पिता जु हितकारी।
नवोन्मेषी व पालनकारी।।
है नाम धरे जगत अनेका।
चयन करे निज बल बुध्दि एका।।
जी जा लगा निज पथ शिक्षार्थी।
हर शिक्षा करे सफल विद्यार्थी।।
बिनु शिक्षक नहीं शिक्षार्थी शिक्षा।
परीक्षक परीक्षार्थी परीक्षा।।
कल युग माह कल बोल बाला।
धावा बोल कल खोल ताला।।
लेकर ज्ञान कुसुम निज साथा।
महकाओ जग भारत माथा।।
नैतिक गुन से बधो बधाओ ।
सद शिक्षक शिक्षार्थी बन जाओ।।
चरित चारू चमके चमकाओ।
चहु दिशि आफ़ताब सा छाओ।।
देख दशा दयनीय देश दिन दूभर दुष्कर।
निखर जा ज्ञानमान पंकजजू भारतपुष्कर।

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