रविवार, 9 मार्च 2014

हम

हम है कौन मौन सदा इस पर रहते !
हम है क्या मायामय मय मय करते !!
हम ऐसे वैसे नहीं कि जैसे तैसे कह देते !
हम हम है हम हरदम हम क्यों न रहते !!१!!
हम मै होकर अलग थलग हैं कर जाते !
जाति पाति के बंधन बध क्रंदन करते !!
बध एक माला में हम कैसे सहज जाते !
धर्म क्षेत्र भाषा पर जब सब एका हो पाते !!२!!
अनेक से एक हम तब जग जग भगाते !
सूर्य बन धरा से त्रास तिमिर तोड़ जाते !!
पर हम है कैसे जैसे होते यन्त्र मंत्र तंत्र !
स्ववश नहीं है परवश या हैं हम परतंत्र !!३!!
स्वतन्त्र देश वासी मक्का सेवे या काशी !
पर पर की इच्छा नाचे क्यों भारतवासी !!
रिमोट से क्यों हो जाते हैं हम संचालित !
वोट की राजनीति से क्यों हो हम बाधित !!
विकास वहाँ कहा नित नए घोटाले जहां !
पर्दानसीन कोई नहीं बे पर्दा हैं सब यहाँ !!४!!
किसको कहें क्यों कहें कैसे कहें क्या कहें !
जमीर बेच जरुरत छोड़ ख्वायिशो में बहे !!
सिगूफा छोड़ तोड़ ताड का मोड़ माड़ महे !
ताली पीट जन बीच कह कहे में रत रहे !!५!!  

1 टिप्पणियाँ:

यहां 9 मार्च 2014 को 8:12 am बजे, Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

 

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