रविवार, 5 जनवरी 2014

परत दर परत

समाज से सब,सब से  समाज संवेदना सारहीन तार-तार !
व्यवस्था- व्यथा को हादसा कह सहते पाते दर्द बार-बार  !! १ !!
संस्कार ,व्यवहार ,आहार ,विहार सब रो रहे बिफर-बिफर !
आचरण से जहा पूजे जाते  वही आचरण जब होवे  जहर !!२!!
सेवा मेवा को बहा कर सेवक-सुत सत सत बरसावे कहर !
दे वेदना नित अपनो को पाते खाते बरसाते फैलाते जहर !!३!!
बात मानव समाज की ,खोलो ज़रा इसकी परत दर परत !
अहिंसा के पुजारी यहाँ दिख रहे है हर गली हिंसा में ही रत !!४!!
त्रिभंगी ,त्रिपुरारि  पर पड़ते ये भारी कर करामात न्यारी !
सराफत -चादर में सिमट-लिपट झपट लूटन की तैयारी  !!५!!
 

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ