मंगलवार, 14 जनवरी 2014

आप हरे संताप पाप ताप

निज सुख दुःख से हट देखे थोड़ा पर को !
सच बात  भारी भरकम माने  अपने को !!
 सुधरेगी सब जब मिटा देगे भय भूत को !
समरसता समानता से एक माने सब को !!१!!
का हे दुखी पर पाप से झेल रहा तू संताप !
निज कर्म धर्म के पाप का सहना तू ताप !!
जग जीवन दिने वाले रखते हर पल नाप !
शरनागत होते आप हरे संताप पाप ताप !!२!!  

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