शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

सच है यहाँ गाते सब धर्म सब ग्रन्थ गीता हो जन हिता !

राम राम कहि कर्म बिचारही जल बिनु मीन सा हो मूक !
निज सोच समझ ज्ञान अज्ञान विवेक से हुई कहा चूक !!
कैसे कैसे दोस्त-दुश्मन दोगली चाल से बदतर करे लूक !
बिजली के नंगे तार सा नंगा हो झटके से सब करे टूक !!१!!
एक नहीं अनेक बार ,बार-बार हर बार करते तार-तार सब !
फिर भी क्यों आस है कि सुधर कर सुधार देगे बिगड़े फब !!
अब बात करामात की उचित ढंग से दंड देगे ही इन्हे रब !
डर नही भगवान का कुलकलंकी कापुरुष किंपुरुष को जब !!२!!
तैयार है हम सुधरने सुधारने को हर पल छोटी बड़ी भूल !
लालच बला सूल रहती तैयार खून सा निकालने को मूल !!
निसंतानी-बईमानी की सम्पत लिपट खिल रहे जो फूल !
चाटेगे धूल मिल मिट्टी जायेगे इनके सारे सपने स्थूल !!३!!
देर-अंधेर,न्याय-अन्याय बीच रब सच का झूठ का नहीं !
मान मर्दक मद मारक मारुति दुख निवारे सब का सही !!
दुर्गा दुर्ग साधिनी साधक साध्य साध संहारे दुष्ट है मही !
जिसका कोई नहीं उसका खुदा करे नीर क्षीर  हर कही !!४!!
विचारना सवारना भूल सुधारना सुधरने का मंत्र मूल !
बात बन जाय समाज में बिन जाय तो नहीं पकडे तूल !!
कथ्य अकथ्य वाद विवाद परिवाद संवाद असंवाद भूल !
पर पर काटक कष्ट कंटक राम दंड से फाँके सकूल धूल !!५!!
भूल अपनी सुधारे सुधरे मत जले स्वं ही चिन्ता-चिता !
हानि लाभ जीवन मरन यश अपयश देता है परम-पिता !!
खल संहारक सुजन तारक दे तुमको कृपा उसको रिता !
सच है यहाँ गाते सब धर्म सब ग्रन्थ गीता हो जन हिता !!६!!  

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ