मंगलवार, 17 दिसंबर 2013

स्वप्न

स्वर्णिम भविष्य के लिए ,मानवता विकास के लिए !
पंक में पंकज के लिए ,स्व व पर के लिए सबके लिए !!
स्वप्न होना स्वप्न आना ,स्वप्न पाना स्वप्न की ओर बदना !
स्वप्न बना कर लीन हो जाना ,स्वप्न बुनस्वप्न साकार करना !!
सकारात्मक प्रवृत्ति विचार विचारात्मक ,
एकात्म भाव से रत हो हो रचनात्मक !
त्यागो सपने जो नकारात्मक ,
सोचो शून्य में शून्य ही होता भाव विनासात्मक !!
सकल शास्त्र पारांगत ,दूषित दुर्निवार दानवता ,
सकल कला धारक ,पोषित प्राणपण कलुषता !
पौलस्त्य ने कलंकित की मानवता ,
राघवेन्द्र ने फिर भी दे दिया शुभता !!
स्वप्न एक दो नहीं सैकड़ो आते और जाते है ,
कितनो की कड़ी को कभी नहीं पकड़ पाते है !
रात के सपनों को तो हम प्रायः भूल जाते है ,
दिन के सपनों पर  तपित हो महल बनाते है !!
सोते सपने स्वर्णिम समय सजोये सवारते सुलाते है !
जगे जागते जग जगाते जोर जोर जेहन जलाते है !!
दो दो हाथ करने पर भी बा मुश्किल यथार्थ हो पाते है !
क्योकि दो-चार सौ में एक दो सपने ही सच हो पाते है !!
सार्थक सकारात्मक सपनों की सीदी विरले चढ़ पाते है !
निरर्थक नकारात्मक के पीछे सुख चैन छोड़ भागते है !!
मृग मरीचिका है नकारात्मक सपने जिसे नहीं पाते है !
प्रतिबिम्ब प्रतिपल सकारात्मक सपने सोच से सुलझ जाते है !!
दुस्वप्न स्वप्न नहीं वैसे ,कुकर्मी मानव नहीं जैसे ,
भाव भवन भाव शून्य हो ताकता निर्निमेष हो कैसे !
विखर जाय मानव का सब स्वर्णिम स्वप्न ही तैसे ,
मिट जाय सारे स्वप्न ,जन भरा हो जब मय से !!
स्वप्न न देखना बुरा या अच्छा ,प्रश्न गंभीर है ,
सुस्वप्न पर बदा कदम पूर्णता की सोच सराहनीय है !
स्वप्न देखना निश्चय ही जन जन के लिए समीचीन है ,
मानवता को लवरेज मानवता से किया जिसने वो माननीय है !!
होगा होगा पूरन काम वही जिसके हौसले बुलन्द है !
स्वप्न करेगे वही इस धरा का पूरा जो नहीं स्वच्छंद है !!

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (18-12-13) को चर्चा मंच 1465 :काना राजा भी भला, हम अंधे बेचैन- में "मयंक का कोना" पर भी है!
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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