भवन
भारती भारत भवन भुवन भर भरे भव भव भूषित भावना !
भस्मासुर भस्म भा भारतीय भारहीन भगत भक्ति भावना !!
नापाक पाक पर पड़ता प्रगट पंच पापी पाते पराजय प्रताड़ना !
बहु धर्म कर्म मर्म युक्त भारत भवन रहे भुवन भर सुहावना !!१!!
जिसने देखा सदन होकर मगन नित !
भवन घर मकान होम हाउस आवास हित !!
ईट भाटा गारा जहा लगा गजधर का चित !
लकड़ी लोहा काच ही से है मकान निर्मित !!२!!
गम सारा हरे सुख सारा सरे वो होता है घर !
पीड़ा दायक नहीं पीड़ा नाशक जो रखते सर !!
परम प्रेम पावन पूरित प्रीति पड़ती परस्पर !
बैर भाव त्यागी नेह गेह का ही हरदम है दर !!३!!
सुख सदन करे दुःख दमन प्यार पूर्ण परिवार मगन !
त्याग तप तपस्या हरने को आतुर दूसरे का तपन !!
माता पिता भाई बहना करे कृपा किंकर कर्म कथन !!
दुनिदारी दुःख दारिद दावानल दूर हो सदा शुभ सदन !!४!!
वास करते सुवास पद्म सा पद्मावती सी घरनी जहां !
न्यौछावर हो सुख सारे दुःख निवरे निश्चित ही तहां !!
कोमल कमल कंठ कोकिल का कागा करकस का कहा !
वास पद्माकर का पद्मासिनी सह होता हरदम वहा वहा !!५!!
शिव शिवा सदन है पुत्र करिवर वदन तात षडानन !
है सारे धूत अवधूत भभूत रमते पर सब है पावन !!
नन्दी सेवक स्वामी पशुपति धावन जहा दसानन !
साँप मूसक सस्नेह बसते बना भवन मनभावन !!६!!
भस्मासुर भस्म भा भारतीय भारहीन भगत भक्ति भावना !!
नापाक पाक पर पड़ता प्रगट पंच पापी पाते पराजय प्रताड़ना !
बहु धर्म कर्म मर्म युक्त भारत भवन रहे भुवन भर सुहावना !!१!!
जिसने देखा सदन होकर मगन नित !
भवन घर मकान होम हाउस आवास हित !!
ईट भाटा गारा जहा लगा गजधर का चित !
लकड़ी लोहा काच ही से है मकान निर्मित !!२!!
गम सारा हरे सुख सारा सरे वो होता है घर !
पीड़ा दायक नहीं पीड़ा नाशक जो रखते सर !!
परम प्रेम पावन पूरित प्रीति पड़ती परस्पर !
बैर भाव त्यागी नेह गेह का ही हरदम है दर !!३!!
सुख सदन करे दुःख दमन प्यार पूर्ण परिवार मगन !
त्याग तप तपस्या हरने को आतुर दूसरे का तपन !!
माता पिता भाई बहना करे कृपा किंकर कर्म कथन !!
दुनिदारी दुःख दारिद दावानल दूर हो सदा शुभ सदन !!४!!
वास करते सुवास पद्म सा पद्मावती सी घरनी जहां !
न्यौछावर हो सुख सारे दुःख निवरे निश्चित ही तहां !!
कोमल कमल कंठ कोकिल का कागा करकस का कहा !
वास पद्माकर का पद्मासिनी सह होता हरदम वहा वहा !!५!!
शिव शिवा सदन है पुत्र करिवर वदन तात षडानन !
है सारे धूत अवधूत भभूत रमते पर सब है पावन !!
नन्दी सेवक स्वामी पशुपति धावन जहा दसानन !
साँप मूसक सस्नेह बसते बना भवन मनभावन !!६!!
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