करोडपति को देखा बनते खाकपति
देखा एक को नहीं अनेक को रोते गाते हँसते खेलते !
दुनिया दीवानी को अपनी अपनी कहानी पर तरसते !!
समय पर नहीं चेत दुःख दर्द पा सब कुछ गवा चेतते !
साम दाम दण्ड भेद से एकल फल अर्थ फलित करते !!१!!
क करम करना धरम धरना को छोड़ होता करोड़पति !
धर्म त्याग न्यायान्याय से ही शीघ्र हो गया लक्ष्मीपति !!
रजनी का उल्लू दिन में डोल बोले हमी है कमलापति !
करे कुकर्म कुधर्म कदाचार कामी कुटिल कुटिलपति !!२!!
बनाया सारा जहा अपना सुख शान्ति रही हरदम सपना !
चार दिन की चादनी पर किया गुमान नहीं कोई कल्पना !!
घर ईट पाथर लौह लक्कड़ से बना कर लिया सुहावना !
पर घर में घरनी नही रही तो भूतो का डेरा ही पावना !!३!!
घरनी मरी पर है घर भरा पडा पूरन है सब धन धान !
भाति भाति की सुविधा पर आती नही है किसी काम !!
पुत्र पुत्र बहु संग समय बना उनके लिए वृहद् सचान !
संचित सब संतान सम्हाले सुखी नहीं इनका जहान !!४!!
जीवन ज्योति बूझ गयी नहीं मिला इनको आराम !
संतान सुखहीन पुत्र गिर गया वशीभूत काम -धाम !!
ठगता ठगाता रहा दिन -रात खो दिया पूर्वजो का नाम !
एक एक मिला ग्यारह करने में खुद भी रहा बदनाम !!५!!
भोला था भोला पति था पाया सब कुछ था किस्मत से !
पर नानी का धन जजमानी का धन नही रहता जतन से !!
तो पानी का धन बेईमानी का धन कैसे बचाए पतन से !
निसंतान का धन विश्वासघात का धन डुबाये तन मन से !!६!!
सपना सजोये रचना करे मन में नित नूतन सृजन का !
पर नहीं था किस्मत में लाल यह विधान भगवन का !!
जो धन जैसे आत है सो धन तैसे जात सत्य कथन का !
समय होत बलवान लूट गया सब सामने अपने नयन का !!७!!
अपनो ने लूटा परायो ने लूटा लेकिन किसी के लिए नहीं छूटा !
जो छूटा वह सब अब परहित करने का बहाना बना कर छूटा !!
जिस जिस ने लूटा लूट गए सब नहीं हुआ उनमे कोई मोटा !
समय दे सदगति सबको मैंने तो सबके हाथ में देखा सोटा !!८!!
रचना मायापति की मानव मन है माया के आधीन !
जो जैसा करम करे वैसा ही है फल सबको उसने दीन !!
अनजाने तो क्षम्य जान बूझ का तो फल है मलीन !
कभी न करना ऐसा वैसा रे मन तभी रहोगे तू कुलीन !!९!!
ख़ाक पति था जो कभी जब ऐसे बन जाय करोड़पति !
होना ही होगा उसे जमीदोज एकदिन बन कर रोडपति !!
खून आँसू रोते तब जब बिगड़ती है इनकी सब गति !
मैंने तो कई बार करोड़पति को देखा बनते खाकपति !!१०!!
दुनिया दीवानी को अपनी अपनी कहानी पर तरसते !!
समय पर नहीं चेत दुःख दर्द पा सब कुछ गवा चेतते !
साम दाम दण्ड भेद से एकल फल अर्थ फलित करते !!१!!
क करम करना धरम धरना को छोड़ होता करोड़पति !
धर्म त्याग न्यायान्याय से ही शीघ्र हो गया लक्ष्मीपति !!
रजनी का उल्लू दिन में डोल बोले हमी है कमलापति !
करे कुकर्म कुधर्म कदाचार कामी कुटिल कुटिलपति !!२!!
बनाया सारा जहा अपना सुख शान्ति रही हरदम सपना !
चार दिन की चादनी पर किया गुमान नहीं कोई कल्पना !!
घर ईट पाथर लौह लक्कड़ से बना कर लिया सुहावना !
पर घर में घरनी नही रही तो भूतो का डेरा ही पावना !!३!!
घरनी मरी पर है घर भरा पडा पूरन है सब धन धान !
भाति भाति की सुविधा पर आती नही है किसी काम !!
पुत्र पुत्र बहु संग समय बना उनके लिए वृहद् सचान !
संचित सब संतान सम्हाले सुखी नहीं इनका जहान !!४!!
जीवन ज्योति बूझ गयी नहीं मिला इनको आराम !
संतान सुखहीन पुत्र गिर गया वशीभूत काम -धाम !!
ठगता ठगाता रहा दिन -रात खो दिया पूर्वजो का नाम !
एक एक मिला ग्यारह करने में खुद भी रहा बदनाम !!५!!
भोला था भोला पति था पाया सब कुछ था किस्मत से !
पर नानी का धन जजमानी का धन नही रहता जतन से !!
तो पानी का धन बेईमानी का धन कैसे बचाए पतन से !
निसंतान का धन विश्वासघात का धन डुबाये तन मन से !!६!!
सपना सजोये रचना करे मन में नित नूतन सृजन का !
पर नहीं था किस्मत में लाल यह विधान भगवन का !!
जो धन जैसे आत है सो धन तैसे जात सत्य कथन का !
समय होत बलवान लूट गया सब सामने अपने नयन का !!७!!
अपनो ने लूटा परायो ने लूटा लेकिन किसी के लिए नहीं छूटा !
जो छूटा वह सब अब परहित करने का बहाना बना कर छूटा !!
जिस जिस ने लूटा लूट गए सब नहीं हुआ उनमे कोई मोटा !
समय दे सदगति सबको मैंने तो सबके हाथ में देखा सोटा !!८!!
रचना मायापति की मानव मन है माया के आधीन !
जो जैसा करम करे वैसा ही है फल सबको उसने दीन !!
अनजाने तो क्षम्य जान बूझ का तो फल है मलीन !
कभी न करना ऐसा वैसा रे मन तभी रहोगे तू कुलीन !!९!!
ख़ाक पति था जो कभी जब ऐसे बन जाय करोड़पति !
होना ही होगा उसे जमीदोज एकदिन बन कर रोडपति !!
खून आँसू रोते तब जब बिगड़ती है इनकी सब गति !
मैंने तो कई बार करोड़पति को देखा बनते खाकपति !!१०!!
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