त्रिमातु की नव वन्दना
उमा रमा ब्रह्माणी अग जग रमनी सृष्टी सुहानी जग मातु कहासिन !
सुन्दर सहज सरल भासिन जो हैं शिव विष्णु ब्रह्म बामांग सुवासिन !!
शक्ति धाम सर्व काम पूरिन जो है सदा दुःख दारिद सब कष्ट निवारिन !
वैष्णवन वैष्णवी शाक्तन शक्ति शैवन शिवा प्रभृत अभिधान धारिन !!१!!
जिनका रूप रूपसी सा देख खल सहज गरल रस पान कर धरा त्यागिन !
शुम्भ निशुम्भ चंड मुंड धूम्रलोचन रक्तबीज दुर्गा महिषासुर मर्दिन !!
नाम अनाम कुनाम सनाम धर असुर जग जब जब अत्याचार करिन !
सुवेष बनाय स्वाचरन से मानवता त्यागी का मातु तू है सर्व बिनासिन !!२!!
रमा समान रमा माँ सदा नारायण संग नारायणी पद्मांगी पद्मासिनी !
धन धान भरो मन मान भरो सुख शान्ति भरो जग जाग निस्तारिनी !!
सर्व मंगला मंगलकरनी भक्तो का हर हर कष्ट सुख भर सुमंगल दायिनी !
नित नवीन पद्मावाली सा सर्वांग सुवासित यश भरो हे मातु यशस्विनी !!३!!
ब्रह्माणी बर बुद्धिदायिनी विमला अमला कमला निर्मला स्फटिक धारिनी !
सच है सदा नहीं कोई है तुझ सा जगत में शुभ्र शुभ्रांगी शुभ्र हंसावाहिनी !!
शोषक शोषित ठग ठगाए पाए बिनाश धोखेबाज विश्वासघाती हे जग तारिनी !
जन मन मंजू कर आसन सुधार धरा कर कर मति विमला हे मति दायिनी !!४!!
त्रिदेवी त्रिदेव प्रिया त्रिलोकी त्रिभुवन तारण तरन त्रय ताप तपन हरन !
त्रिपुर सुन्दरी त्रयलोक वन्दिता त्रिनिनादिनी त्रास हारिनी जग कारन करन !!
दिवाकर ज्यो हरे तम जगत का त्यों हे मातु तू हो जगत त्रास तारन !
त्रिमातु की नव वन्दना अर्पित त्रिपद कमल जेहि कर कमल सब दुःख समन !!५!!
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