स्वयं के मनन से
जीवन को जीना सदाचरन से,
मानव बन मानवता का पालन हो तन-मन से!
ज्यो सूर्य करते कर्म अपना,
अनवरत निज मार्ग चलते नहीं डरते राहु ग्रसन से!!
हर जन हो निमग्न निज कर्म में,
मिल जाये तब राहत एक दूसरे के जलन से!
करे कर्म निज का तो हो भला सबका,
आ जाये हम इस मार्ग पर स्वयं के मनन से!!
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]
<< मुख्यपृष्ठ