परिवेश
उसकी भावना उसका रुप,
जैसे हवन का अधजला धूप!
परिवेश ने ऐसा बनाया,
उसने मुझे सुनाया!
बात होने लगी, तर्को की झङी लग गयी!
फिर ध्यान आया अरे हमारे अक्ल को तो गाय चर गयी!!
हम केवल हम हमारे को देख रहे हैं,
थोङा देश का राजनीति पर क्यों नहीं सोच रहे हैं!
परिवेश एक दो से नहीं,
यह बात है हरदम सही!
हर तरफ मानवता रो रही है,
दानवता फल फूल रही है!
अपने अपने को बनाने में लगे हैं,
दूसरे दूसरे को देखने में लगे हैं!
दूसरों की रत्ती भर कमी पहाङ सी दिखती है!
स्वयं की पहाङ सी कमी बिल्कुल नहीं दिखती है!!
बन्द करो पर परखना ,
शुरु करो अपने आप को देखना!
सब अपने आप को देखने लगें,
अपने आप को परखने लगें!
अपने आप को सुधारने लगें,
अपने आप पर विचारने लगें!
निश्चित है सुधरेगा परिवेश!
बन जाये भारत फिर गरिमामय देश!!
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