शनिवार, 22 दिसंबर 2012

स्वसोच

कौन हो तुम,सोचो, कंस कृष्ण, राम रावण-----
वजूद सबका है इन जोङो में ,राम-कृष्ण,कंस-रावण में!
हो सकता है, चन्दन सा विष सा,
हमारा वजूद है कैसा? सोचो-----
राधा- कृष्ण,सीता- राम की जोङी,
सती उमा पार्वती ने शंकर से कभी नाता न तोङी!
परिवार भार सा आज का,क्या कहना है आज के समाज का!
पार्वती परिवार,स्वर्ग का द्वार,
जहां पति अवधूत, वेश से भूत,
पुत्र हैं विचित्र- दिखते सचित्र,
तो सेवको का क्या कहना,
सबका है रुप ढंग अपना- अपना!
संभालती सबको सब है मस्त,
नहींहै कोई किसी से पस्त,
चेला रावन महा अपावन,
यद्यपि पिता प्रसिद्ध पावन,
मनन चिन्तन दे समाधान,होना होगा सवधान!!
द्विचित्त विचार है संहारक मारक,
एकचित्त ही है हमारा तारक!
रावन पावन बन जाय,यह मां को नहीं सुहाय,
मां का दुलार मार प्यार,पाकर बार-बार,
पङता है बालक में उसी सा संस्कार!
कंस कृष्ण मामा-भांजा, भांजा देता है मामा को सजा,
कंस मामा शब्द को कर दिया कलंकित,
शकुनि ने भी इसी ओर कर दिया था चित्त!
ऐसे शकुनी-कंस मामा,करते है आज भी करिश्मा,
राम रावन के लिए, तो कृष्ण कंस के लिए,
लेकिन आज नहीं दिखते राम,
रावन तो बनाये गली गली में निज धाम!
कृष्ण की बासुरी शंख बजते नहीं,
दुर्योधन कंस सा अत्याचारी थमते नहीं!
क्यो न अपने अन्दर के राम-कृष्ण को जगाये,
स्व- पर को भूल अपने रावन-कंस को भगाये!
एक मर्यादा सहित संसकारित समाज को बनाये,
पूरे विश्व में भारत के संसकार ज्ञान-मान को बढाये!
जब सजोये ज्ञान-मान बूंद बूंद
बढ जाये खुद ब खुद वजूद,
बन जाये धरा सर्वदा हरा भरा
जब अपनाये राम कृष्ण को खरा-खरा!
हम सबके मन में हमेशा हो यह भाव भरा!
स्वर्ग सी शोभित हो हमारी धरा!!

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