मुक्तक
वाद की है झङी लगी, जात पात का मेल!
विकृतियां अब समाज की, हो रही वीष बेल!!१!!
तुलसी के सात काण्ड, अब तो काण्ड अनन्त!
कल्याण नही अब देश का, तेरे बिन भगवन्त!!२!!
नहीं पता हैं काण्ड का, चीनी बिजली फोन!
हर्षद मेहता जैन बन्धु, इनसे अछुता कौन!!३!!
अमानवीय मानवो का, करो शीघ्र कल्याण!
सद्भावना को भरो,दशरथ तनय महान!!४!!
हाय सफेदपोशों की, जिन्दगी लहर बनी!
प्रजातन्त्र में प्रजा की, जिन्दगी जहर बनी!!५!!
देखकर प्रजा का रुप,भारती विफर पङी!
स्वतन्त्रता का यह रुप,कि नीतियां यो सङी!!६!!
नगरों में अब सुकरी, देख गाय का भाल!
सोचती है मन में, कर लेगी दो लाल!!७!!
समय पर बदलते रंग, गिरगिट की है बात!
अब क्षण में बदलता रंग, इन्सान है दिन-रात!!८!!
बात कभी सत्य,भुख बदलता ईमान!
अब तो यह सत्य,सिक्के पे बदलता ईन्सान!!९!!
चरित्र से है सब गिरे,तो कौन बचा नेक!
यदि कही एक गिरता,तो हसते अनेक!!१०!!
चरित्र बेचकर आजकल,धन कमाया जाता!
चरित्र की रक्षा धर्म है,कैसे उन्हें भाता!!११!!
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