विचार
मन-मंदिर,तन-आगार भरे हैं,
नाना ज्ञाताज्ञात विचार।
एक दिन सहसा खूब उछले हैं,
बरसाती मेढ़क अपार।।
इन्सान हैवान या भगवान,
मानव है या जानवर।
गाते किस्मती या कर्मवान,
जीते भूत यहाँ बन मार।।
आते जाते गाते पाते हर स्थान,
इक दूजे को अंगुली उठाते।
लांछन लगाते खुद मान महान,
जंजीरी जमीर जू जगाते।।
फाड़ फाड़ मुह कोसते सब नार,
अवगुन खान नार बताते।
हक्का बक्का हो जाते अपनी बार,
दूजे पर ही प्रहार कराते।।
सड़ी मानसिकता चलते ज़हर उगलते,
बेटी बहना माँ दादी भूले।
इक कुकृत्य पेख जाति पे उंगली उठाते,
दल बदल हर झूला झूले।।
सब माने सब करते दूजे को कोसते,
चटकारें ले पर पर।
अपने पर आ तो दूजा तराजू तौलते,
क्यों गाज गिरे स्व पर।।
खैर विचार अपने अपने स्वतन्त्र हैं,
कथन करना धर्म है।
विचारी बेचारा इस जहां परतन्त्र हैं,
यही तो युग मर्म है।।
तोड़ो कारा जाति धर्म क्षेत्र भाषा की,
बनो इन्सान हर पल।
नर-नारी इन्सान हैं सूत्र इन्सानों की,
विचार बना होवे सबल।।
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