शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

मनवा मोर मोहे मोहित मान मन मोहनी

प्रकृति पुरुष का है जग अद्भुत खेल।
नित नाच नचावे बात बनावे कर मेल।।
नख शिख शील वदन मयंक मन मोहे।
नियति नियत नर नारी नव नवल नोहे।।
रच बस माया मोह कोह काम लोभ में।
कुदरत करिश्मा कानन कदम कद में।।
अनुराग वाग नर माली सुमन सूल चुन।
मोह गीत दर्द मीत धागा जू उलझ सुन।।
पद्म पद कमल नाल सा कोमल तन-मन।
बिनु घरनी घर भूत का डेरा जू है रे जन।।
नारी नर बनावे घर बसावे सुख शांति से।
कुनारी काम कोह रत नसावे नवास से।।
मनवा मोर मोहे मोहित मान  मन मोहनी।
मधुर मधुर मित मिलन मम मदन मोरनी।।
सेविका स्वामिनी सखा सच सदा शेरनी।
सहज सुकुमारी सदा सत सत सौदामिनी।।
  

3 टिप्पणियाँ:

यहां 16 जनवरी 2015 को 4:05 am बजे, Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (17-01-2015) को "सत्तर साला राजनीति के दंश" (चर्चा - 1861)7 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

 
यहां 16 जनवरी 2015 को 4:28 am बजे, Blogger gstshandilya ने कहा…

साधुवाद।

 
यहां 16 जनवरी 2015 को 9:32 pm बजे, Blogger Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

 

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