गुरुवार, 15 जनवरी 2015

श्रमेव जयते

परदे में सारा जहां सोहता है सदा।
बेपरदा भी निभाते नियम कायदा।।
जाओ जहां में जहाँ बन रहो मुदा।
लोक मानस मानस बसाओ सदा।।1।।
जूनून जगा मन उसमे बसा सतत।
लेबर इज विक्ट्री मन भृंग होवे रत।।
सूर्य चन्द्र सा करे स्वकर्म अनवरत।
पथ शूल फूल तप तप में जो तपत।।2।।
असत रत होत नत सत्यमेव जयते।
बिकल कल कल ले हो  नम नयते।।
जा जा भावे ता ता पावे संग सहृदते।
कोरी कल्पनात मानो श्रमेव जयते ।।3।

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