रविवार, 16 अगस्त 2020

|| दूध || doodh hindi poem milk

बन्दउँ पयनिधि रमन रमापति जगदीश।
सोहत ओढ़े चहु दिशि क्षत्र रूप फणीश।।
दूध महामहिमा मंडित सेवे महि अहि ईश।
 पूजे नित गोपाल गोरस उमापति गौरीश।।1।।
स्तन्य पीयूष नवजात सह है अमृत सबका।
दुग्ध क्षीर दोहज पय बलवर्धक जन जनका।।
बात खूब खीर खोआ रबड़ी कुल्फी स्वादका।
जनक है दही पनीर छेना श्रीखण्ड चीज का।।2।।
कथा दूध-पानी की मानव को शिक्षा देती है।
त्याग तपस्या और समर्पण भाव भर देती है।।
मित्रता की अद्भुत मिसाल प्रदर्शित करती है।
सर्वस्व त्याग विश्वास बनाना सिखलाती है।।3।।
दूध से बनता मख्खन घी अरु लस्सी मठ्ठा।
माखन मिसरी खाकर बनते हम हट्टा-कट्ठा।।
अविश्वासी से करें काहे हम कभी सट्टा-बट्टा।
साँप साँप ही रहेगा पिलाओ उसे दूध या मठ्ठा।।4।।
भारत माँ के आँचल में ही हमको रहना है।
प्राण जाय पर हमें दूध का कर्ज चुकाना है।।
हमारी धरा पर आये हर शत्रु को बताना है।
निज प्रहार से छठी का दूध याद दिलाना है।।5।।
बीते समय सा नहीं साँप को दूध पिलाना है।
हमें अब छाछ को भी फूंक फूंक कर पीना है।।
नव जन्में शत्रु अहि के दूध के दाँत तोड़ना है।
सब थल दूध का दूध पानी का पानी करना है।।6।।
दूध का धूला बनते उन्हें आईना दिखाना है।
दरिद्रता तज दूध की नदियाँ अब बहाना है।।
मलाई वालों को तो दूध की मख्खी बनाना है।
दो दो हाथ कर अबतो दूध का कर्ज चुकाना है।।7।।
खाओ दूध मलाई पर करो सबकी भलाई।
दूध से करो मत करो पानी से कभी कमाई।।
मत बनो निज तेज क्षीण कर पूस धूप भाई।
दूध सा श्वेत रहो अंत सब माटी मिलि जाई।।8।।






1 टिप्पणियाँ:

यहां 17 अगस्त 2020 को 3:11 am बजे, Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

 

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ