||| पंक्षी राज बाज ||| eagle poem
भारत भूमि विश्व-पटल पर दर्शनीय चहु ओर।
नागपास में जब रघुनायक तब गरुड़ का शोर।।
दक्ष प्रजापति सुता विनीता आयी कश्यप कोर।
कद्रू कथा कठिन काष्ट जलाया जमाकर जोर।।1। अरुण ज्येष्ठ शाप माता बनी निज बहना दासी।
सौत बहन कद्रू, अनुज गरुड़ की अपनी मासी।।
शाप मुक्त होना है जब कृपा करें पयधि वासी।
कद्रू पुत्र नाग जब गरुड़ चोंच बस जाते कासी।।2।।
धार्मिक वैदिक पौराणिक बात आती बार-बार।
संस्कृति संस्कार सत्कर्म सत्पुरुष सबका सार।।
पंक्षी राज गरुड़ अरुण शाप किया माँ उद्धार।
आज विष्णु भगत की चर्चा होती है द्बार-द्वार।।3।।
आध्यात्मिक से लौट लौकिक में अब आते हैं।
साहस-शक्ति स्तम्भ श्येन का करतब गाते हैं।।
जो गरुड़ सतयुग-द्वापर वे ईगल बन जाते हैं।
सनबर्ड काइट हॉक फाल्कन यहाँ कहे जाते हैं।।4।।
बहरी बाज चील बनकर हमको शिक्षा देते हैं।
साहस-शान्ति प्रतीक शक्ति का पाठ पढ़ाते हैं।।
निज जमी से नाग शत्रु को आसमा ले जाते हैं।
विश्वासघाती जमीदोज यही सबक सिखाते हैं।।5।।
2 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर।
बहुत बहुत धन्यवाद।
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