बकवास
संसार-सिन्धु इन्सान-विन्दु
भटक रहा दर दर अपनी पहचान बनाने ।
पाने गवाने पकाने बुझाने दिखने दिखाने,
सवारने आजीवन किन्सुक सा सकुचाने।।
बकवास करने में ब्रह्मानन्द पाते ,
परमानन्द लेते हँसते हँसाते सुख पाते।
रातो रात जाने अनजाने को पाने,
जमीर बेच जानवरों से बदतर कर जाते।।
बकवास ही है तो सार्थक भी है,
प्रेम बकवास विश्वास बकवास आस है।
मान-अपमान,जान-पहचान है
सतधाम काम रत भी यहाँ भगवान है।।
बकवास वा यथार्थ सोच हैं
किनारे बैठ निठल्ले आतुर सब पाने को।
बुजुर्गों की सभी बाते कोच हैं
आज आतुर हैं बिना खेले जित जाने को।।
राम कृष्ण को माने जाने सब
राम कृष्ण की बारी पर खेलेअपनी पारी।
युग काल धर्म अब तब जब
हर बात बना करारे करे बकवास भारी।।
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