अमिय - गरल सु जग - जीवन
अमिय रूप भव- कूप सदा, बढायें महा मान !
जीवन तो नश्वर यहाँ ,अमर होय यश- गान !!१!!
कथनी- करनी जब एकै ,सुदृढ़ यश- भवन नीव !
अजर-अमर हो कर्म सब ,राम धाम वह जीव !!२!!
जगत- हलाहल में रहत ,करत धरत शुभ काम !
जगत- अमिय उस हित बनत ,नित नव रचना नाम !!३!!
जग- जहर वन्दनीय नित ,रत इस हित सब लोग !
मादकता में बहक चित ,सत सत भोगे भोग !!४!!
श्वेत- श्याम जु अमिय - गरल ,करत विलग ही काम !
सुबह सुखद जीवन करत ,चलत सकल दुःख शाम !!५!!
अमिय- गरल सु जग- जीवन ,कर्म रत है हर पल !
पय व रम सा सुखद- दुखद ,दे रहा सब को फल !!६!!
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]
<< मुख्यपृष्ठ