सोमवार, 17 मई 2021

√ ।। सन्देह अलंकार-Doubt।।

      सन्देह अलंकार  -Doubt
परिभाषा:-
उपमेय में जब उपमान का संशय
हो तब उसे संदेह अलंकार कहते हैं।
प्रकृत(प्रस्तुत) में अप्रकृत(अप्रस्तुत)
का संशय अर्थात संदेह होता है।
संशय ही रहता है स्पष्ट नहीं होता
है। ध्यान रखे संशय स्पष्ट होते ही
भ्रांतिमान अलंकार  हो जाता है।
इस अलंकार में प्रायः निम्न  संदेह
 वाचक शब्द आते है:-
की,कि, को,किधौं, कीधौ,कैधौं, 
केधौ, किं, किं वा,वा, या आदि

इस अलंकार में तीन बातों का होना 

आवश्यक है-

(क) विषय का अनिश्चित ज्ञान।


(ख) यह अनिश्चित समानता पर 

निर्भर हो।


(ग) अनिश्चय का चमत्कारपूर्ण 

वर्णन हो।

उदाहरण:-

1. सारी बीच नारी है

 कि नारी बीच सारी है। 

 सारी ही  की नारी है

 कि नारी ही की सारी है।।

2.यह काया है या शेष 

उसी की छाया,
क्षण भर उनकी

कुछ नहीं समझ में आया। 

3.को तुम स्यामल गौर सरीरा।

 छत्रिय रुप फिरहु बन बीरा।।

 की तुम तीनि देव मह कोऊ।

 नर नारायण की तुम दोऊ।।


4.कि तुम हरि दासन्ह मह कोई।

 मोरे हृदय प्रीति अस होई।।

 कि तुम राम दिन्ह अनुरागी।

 आयहु मोहि करन बड़ भागी।।

5.(बालधी बिसाल विकराल

 ज्वाल-जाल मानो)

लंक लीलिबे को काल

 रसना पसारी है ।

कैधौं ब्योमबीथिका

 भरे हैं भूरि धूमकेतु,

बीररस बीर तरवारि

 सी उघारी है ।।

तुलसी सुरेस चाप,

 कैधौं दामिनी कलाप,

कैंधौं चली मेरु तें 

कृसानु-सरि भारी है ।

देखे जातुधान

जातुधानी अकुलानी कहैं,

“कानन उजारयौ
अब नगर प्रजारी है ।।


                धन्यवाद


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