सोमवार, 7 दिसंबर 2020

।।। आनन्द-क्रन्दन ।।।

एक कथा जिसमें है जीवन का आनन्द-क्रन्दन।
सुना रहा है आपको जगत तनय मेवाती नन्दन।।
बैठा था महुआ के नीचे तिलौली तालाब तट पर।
मौत मौसम मच्छर मंत्री का चिंतन था सिर पर।।1।।
मौत कही भी बिन बुलाए मेहमान सा घुस जाती।
गिरगिट सा मौसम-मानव की चमक बदल जाती।।
मच्छर सा छली माया निज दंस सार छोड़ जाती।
मंत्री की जिह्वा जन मध्य कुछ का कुछ कर जाती।।2।।
कुछ नहीं मैं तो इन अपने ख़यालों में था तल्लीन।
बचपन की है बात बच्चा-मन था गभ्भीर  गमगीन।।
सोच रहा भूत-भविष्य को हो इनकी साया में लीन।
वर्तमान मेरा जानते तिलौली-तालाब के नर- मीन।।3।।
महुआ जड़-तालाब जल आँख-मिचौनी खेले जहाँ।
मैं मति मंद महुआ जड़ सा जड़ बन कर बैठा वहाँ।। 
अचानक जगत सुत जगत का दुःख-सुख देखा तहाँ।
आनन्द-क्रन्दन मेल ने खेल खेला था जो वहाँ महाँ।।4।।उड़ता कौवा तालाब ऊपर कांव-कांव कर रहा था।
मैंने सोचा पेट हित मछलियों को वो ढूढ़ रहा था।।
पर मेरा चिंतन तो सदा के लिए झूठा हो रहा था।
कौवा आनन्द के क्रन्दन हेतु क्रन्दन कर रहा था।।5।।
एक चिड़िया अण्डे से बाहर आते बच्चे की खुशी में।
आनन्द से झूम रही थी वह वहाँ की निज मस्ती में।।
 काग की दुष्ट दृष्टि दुष्ट दृष्टि सी झूम रही आनन्द में।
देख काग-चिड़ी आनन्द-क्रन्दन देव पेशमपेश में।।6।।
दृश्य अद्भुत आनन्द मय चिड़िया नवजात हेतु था।
सरोवर तट वसन्त का मौसम आनन्द हर ओर था।। 
 हर पेड़-पौधों के किसलय से सतरंगी परिदृश्य था।
प्रकृति के श्रृंगार में डूबा मैं अति आनन्द विभोर था।।7।
कौवे का सर मध्य ऊपर उड़ना बोलना आम ही था।
बगुले सा सूक्ष्म जीव निगलना उसका काम ही था।।
पर आज उसकी नजर अण्डे के चूज्जे पर टिकी थी।
मेरी नजर इन सबसे दूर निज चिंतन में खूब डूबी थी।।8
अचानक कौवा झपटा अड्डे सहित चूज्जे को निगला।
चिड़ी रोई चिल्लाई मुझे जगाई कह बार-बार पगला।।
मेरी दृष्टि कौवे पर पड़ी उठाया छड़ी पीछे-पीछे दौड़ा।
सोच लिया मैंने अब तो मुझे करना है कौवे को चौड़ा।।9
कौवा चतुर-चालक पंछी लाला से रोटी ले भागा था।
लाला से पाला पड़ा कौवे पर लाला भारी ही पड़ा था।।
काँव- काँव कर कौवा कर आयी रोटी गवा चुका था।
कायस्थ कौवे की कहानी कई-कई बार मैं सुना था।।10
जाको राखे साईंया मार सके ना कोय कथा सुना था।
दौड़ा लिया था कौवे को देखा टहनी आड़ में बैठा था।।
जैसे ही चोंच खोल अड्डे को रखा मैं नीचे पहुँचा था।
पत्थर मारा चूज्जा गिरा मैंने हाथों में लोक लिया था।11
हर पल नव आश नव विश्वास हार-जीत दिखा रहा।
मौत के मुँह से चूज्जे सा बचता जीवन सिखा रहा।।
मौसम का करवट मच्छर सा शामिल बाजा बजा रहा।
मंत्री-सन्तरी कहाँ कायर कागा करतब दिखा रहा।।12।
चूज्जे संग मैं हताश आँखे चिड़ी को ढूढ़ रही थी।
क्या करूँ मैं चूज्जे का सोच काया अधीर हो रही थी।।
ओ चिड़ियाँ समूह में आनन्द स्वर साथ आ रही थी।
अरे मुझे धन्यवाद दे बच्चे को ले ओ जा रही थी।।13।।
कौवे का क्रन्दन काँव काँव करना क्या कहता।
आनन्द-क्रन्दन बीच मैं तालाब तट क्या करता।।
कहीं खुशी कहीं गम अद्भुत ढंग से प्रभु भरता।
उस घटना की याद में मेरे आखों से आँसू झरता।।14।।
             ।।धन्यवाद।।







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