सोमवार, 13 जुलाई 2020

प्रकृति-पुरुष nature & human being hindi poem

 दोहा:-बंदउँ शंकर सुवन,कृपासिन्धु महावीर।
         प्रकृति-पुरुष गाथा,महके हर हर तीर।।
प्रकृति-पुरुष निर्माता,इनकी गाथा कौन कहे।
माया-जीव सब जाने,इन्हें न जाने कौन अहे।।
जगत तनय मेवाती नंदन,निज विचारों में बहे।
छोटे से छोटा है मोटा,निज कर्मों से सब लहे।।1।।
गज केहरि हरि हरि गुन गाहक हर चाल चले।
नर-मादा बचन बध हर जीवन सुबह शाम बने।।
नित नूतन नव रस ताल छ्न्द नव नव नमन करें।
 नद नदी नाद से रसमय सागर जीव जीवन भरें।।2।।
सावन मनभावन प्रकृति धरा का नित श्रृंगार करे।
भाँति भाँति अलौकिक आभा प्रकृति से खूब झरे।।
भादव भार भुवन भरका भर मन मह ललक भरे।
नदी-नाद सब ताल-तलैया उमगत है चहु ओर खरे।।3।।
कनक देह  प्रकृति गज गामिनी मन छोह छरे।
शुक-पिक सारंग मैना मधुर-मधुर स्वर गान करे।
ताल-तलैया नदी-नाल में सफरी बहु तरङ्ग भरे।
मन-मयूर नित नव-नव नाच-नाच नयन नीर धरे।।4।।


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