शनिवार, 12 नवंबर 2022

।।पुनरुक्ति, पुनरुक्तिप्रकाश,पुनरुक्तिवदाभास और विप्सा अलंकार।।

पुनरुक्ति, पुनरुक्तिप्रकाश पुनरुक्तिवदाभासऔर विप्सा अलंकार(आवृत्ति मूलक अलंकार)

1-पुनरुक्तिअलंकार और पुनरुक्तिप्रकाशअलंकार

पुनरुक्तिअलंकार और पुनरुक्तिप्रकाशअलंकार दोनों को विद्वानों ने एक ही माना है।हम इन्हें विस्तार से अलग-अलग करके भी समझ लेते हैं।

 जब काव्य  में प्रभाव लाने के लिए किसी शब्द की आवृत्ति एक ही अर्थ में की जाय तब वहाँ पर पुनरुक्ति अलंकार होता है।

 पुनरुक्ति,पुनः+उक्ति से बना है । इसका अर्थ होता है आवृति, पुनरावृति या दोहराना। एक ही शब्द की जब पुनरावृति की जाती है, तो उसे पुनरुक्ति या द्विरुक्ति कहते हैं। पुनरुक्त शब्दों की रचना मुख्यतः सार्थक शब्द की पुनरावृत्ति से होती है। इसमें संज्ञा,सर्वनाम,क्रिया विशेषण आदि की पुनः उक्ति की जाती है।

ध्यान रखें जब  पुनः कहे गए शब्दों के अर्थ भिन्न होते हैं तब यमक अलंकार होता है और जब शब्दों के अर्थ एक समान रहते है तब पुनरुक्ति अलंकार होता है।

उदाहरण:-

1-मधुर-मधुर मेरे दीपक जल।

जनम सिराने अटके-अटके।।

2-विहग-विहग,फिर चहक उठे ये पुंज-पुंज।

3-मधुर वचन कहि-कहि परितोषी।

4-झूम-झूम मृदु गरज-गरज घनघोर।

5-पुनि-पुनि मोहि दिखाव कुठारू।

  चहत उड़ावन फूँक पहारू।।

6-राम-राम कहु बारम्बारा।

चक्र सुदर्शन है रखवारा।

7-राम-राम कहि राम कहि राम-राम कहि राम।

तनु परिहरि रघुपति बिरह रावु गयउ सुरधाम।।

8-पुनि-पुनि कहत कौन है माता को है तेरो तात।

2-पुनरुक्ति-प्रकाश अलंकार

"जहाँ काव्य में प्रभाव लाया जाय शब्दों को दोहराकर।

हो वह पूर्ण अपूर्ण या अनुकरण वाचक।

सभी शब्द भेदों संज्ञा से विस्मयादिबोधक तक

विभक्ति सहित शब्दों से भी बनता पुनरुक्ति प्रकाशक।"


 जब विषय को प्रकाशित करने,अर्थ में रोचकता लाने अथवा उक्ति को परिपुष्ट करने के लिए किसी शब्द की आवृत्ति की जाय तब वहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार होता है।

अंग्रेज़ी में इन  दोनों अलंकारों को 'टॉटोलोजी' (Tautology) कहा जाता है । फारसी तथा उर्दू में 'तजनीस मुकर्ररकहते हैं। अधिकतर विद्वान दोनों अलंकारों को एक ही मानते हैं। अतः परीक्षा में इन दोनों में से जो नाम आए आप उसका प्रयोग करें हमभी अधिकतर विद्वानों के साथ हैं।

उदाहरण:-

1-ठौर-ठौर विहार करती सुन्दरी सुर नारियाँ।

2-हमारा जन्मों जन्मों का साथ है।

  जो हमेशा-हमेशा रहेगा।

3-बनि-बनि-बनि बनिता चलींगनि-गनि-गनि डगदेत ।

धनि-धनि-धनिअखियाँ,सुछवि सनि-सनि -सनि सुख लेत।।

4-भरत बाहु बल सील गुन, प्रभु पद प्रीति अपार।

मन महुँ जात सराहत ,पुनि पुनि पवनकुमार।।

5-तात कपिन्ह सब निसिचर मारे।

महा महा जोधा संघारे।।

6-यह बृतांत दसानन सुनेऊ।

अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ।।

3-पुनरुक्तवदाभास अलंकार

"पुनः उक्ति होने का केवल होता है आभास जहाँ।

पुनरुक्ति व पर्याय नहीं होता पुनरुक्तवदाभास वहाँ।।"

 सीधी सी बात है --पुनः उक्त वद आभास अर्थात् 

जब काव्य में शब्दों की पुनरुक्ति नहीं होती है केवल पुनरुक्ति का आभास होता है,तब वहाँ पुनरुक्तवदाभास अलंकार होता है।  यहाँ आभासित शब्दों के अर्थ अलग होते हैं।

उदाहरण:-

1-अली भौर गुंजन लगे,होन लगे दल-पात

जहँ तहँ फूले रुख तरु, प्रिय प्रियतम कहँ जात।।

अली का आभासित अर्थ भौरा पर यहाँ सखी।

पात का आभासित अर्थ दल अर्थात पत्ता पर यहाँ गिरना।

रुख का आभासित अर्थ तरु परन्तु यहाँ सूखा हुआ।

प्रिय का आभासित अर्थ प्रियतम परन्तु यहाँ प्यारे।

2-जन को कनक सुवर्ण बावला कर देता।

कनक का आभासित अर्थ सुवर्ण पर यहाँ धतूरा।

3-दुल्हा बना बसंत बनी दुल्हन मन भायी।

बना का आभासित अर्थ दुल्हा पर यहाँ बनना।

बनी का आभासित अर्थ दुल्हन पर यहाँ बननाअर्थात तैयार होना।

4-सुमन फूल खिल उठे, लखों मानस मन में।

सुमन=पुष्प ,फूल काआभासित अर्थ पुष्प लेकिन यहाँ प्रसन्न और मानस का आभासित अर्थ मन लेकिन यहाँ मानसरोवर ।

5-निर्मल कीरति जगत जहान

जगत काआभासित अर्थ संसार लेकिन यहाँ  जागृत और जहान का संसार ।

6-वंदनीय केहि के नहीं, वे कविन्द मति मान।

स्वर्ग गये हूँ काव्य रस, जिनको जगत जहान।।

जगत काआभासित अर्थ संसार लेकिन यहाँ  जानना और जहान अर्थात् संसार।

7-पुनि फिरि राम निकट सो आई।

फिरि का आभासित अर्थ पुनि लेकिन यहाँ लौटकर ।

4-वीप्सा अलंकार

"आदर घृणा विस्मय शोक हर्ष युत शब्दों को दोहराये।

अथवा विस्मयादिबोधक चिह्नों से भाव जताये।

शब्द वा शब्द समूहों से विरक्ति घृणादि दर्शाये।

तह वीप्सा अलंकार बन जन जन को लुभाये।।"

अर्थात् जब काव्य में घृणा,विरक्ति, दुःख, आश्चर्य, आदर, हर्ष, शोक, इत्यादि  विस्मयादिबोधक भावों को व्यक्त करने के लिए शब्दों की पुनरावृत्ति की जाए तब वीप्सा अलंकार होता है।

वीप्सा का अर्थ होता है – दोहराना और पुनरुक्ति का भी अर्थ  द्विरुक्ति, आवृत्ति या दोहराना होता है, इस भ्रम के कारण अनेक विद्वान दोनों को एक मान लेते हैं।लेकिन दोनो अलग-अलग हैं और दोनों में अन्तर है।
उल्लेखनीय है कि हिन्‍दी साहित्‍य में सर्वप्रथम भिखारीदास ने ‘वीप्सालङ्कार’ के नाम से इसे ग्रहण किया है।

वीप्सा द्वारा मन का आकस्मिक भाव स्पष्ट होता है। हम अपने मनोभावों ( आश्चर्य,घृणा,हर्ष,शोक आदि)  को व्यक्त करने के लिए विभिन्न तरह के शब्दों ( छि-छि , राम-राम शिव-शिव, चुप-चुप, हा-हा,ओह-ओह आदि) का प्रयोग करते है। अतः काव्य में जहाँ इन शब्दों का  प्रयोग किया जाता है वहां वीप्सा अलंकार होता है। साथ ही साथ यह भी ध्यान रखना है कि जब भी काव्य में किसी शब्द के बाद विस्मयादिबोधक चिह्न(!) पाया जाय वहाँ वीप्सा अलंकार होगा।

उदाहरण :-

1-चिता जलाकर पिता की, हाय-हाय मैं दीन!

नहा नर्मदा में हुआ, यादों में तल्लीन!

2-शिव शिव शिव ! कहते हो यह क्या?
ऐसा फिर मत कहना।
राम राम यह बात भूलकर,
मित्र कभी मत गहना।।
3-राम राम ! यह कैसी दुनिया?
कैसी तेरी माया?
जिसने पाया उसने खोया,
जिसने खोया पाया।।
4-उठा लो ये दुनिया, जला दो ये दुनिया।
तुम्हारी है तुम ही सम्हालो ये दुनिया।
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है!
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है!
5-मेरे मौला, प्यारे मौला, मेरे मौला…
मेरे मौला बुला ले मदीने मुझे!
मेरे मौला बुला ले मदीने मुझे!

6-अमर्त्य वीर पुत्र हो दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो

प्रशस्त पुण्य पंथ है बढ़े चलो -बढ़े चलो !

7-हाय ! क्या तुमने खूब दिया मोहब्बत का सिला।

8-धिक ! जीवन को जो पाता ही आया विरोध।

धिक ! साधन जिसके लिए सदा ही किया सोध।

9-रीझि-रीझि रहसि-रहसि हँसी-हँसी उठे!

साँसे भरि आँसू भरि कहत दई-दई!

उक्त उदाहरणों से एक और बात स्पष्ट होती है कि वीप्सा अलंकार में शब्दों के दोहराव से घृणा या वैराग्य के भावों की सघनता प्रगट होती है।

                      ।।धन्यवाद।।  

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