√।।जलचर थलचर नभचर नाना। जे जड़ चेतन जीव जहाना पर सत्सङ्ग का प्रभाव।।।
मति कीरति गति भूति भलाई। जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई॥ (1)मति-बुद्धि-सुमति(2)कीरति-कीर्ति-यश,(3)गति-सद्गति-मुक्ति,(4)भूति-विभूति-गौरवपूर्ण स्वरुप(ऐश्वर्य) और(5) भलाई-कल्याण-सौभाग्य इन पाँच अति महत्वपूर्ण चीजों की या यों कहें संसार में सर्वस्व की प्राप्ति कैसे और किसके प्रभाव से हो सकती है ----
जानते है रामचरितमानस की इन पंक्तियों के आधार पर:-
जलचर थलचर नभचर नाना। जे जड़ चेतन जीव जहाना।।
मति कीरति गति भूति भलाई। जब जेहिं जतन जहाँ जेहिं पाई॥
हम तो मनुष्य है यहाँ तो जलचर थलचर नभचर नाना। जे जड़ चेतन जीव जहाना।अर्थात सबकी बात ही कह दी गयी है- इन सभी को जानने के बाद हम मूल प्रश्न का जबाब स्वयं ही पा जायेगे देखते है--
हम तो मनुष्य है यहाँ तो जलचर थलचर नभचर नाना। जे जड़ चेतन जीव जहाना।अर्थात सबकी बात ही कह दी गयी है- इन सभी को जानने के बाद हम मूल प्रश्न का जबाब स्वयं ही पा जायेगे देखते है--
1-(अ)जलचर -जड़- मैनाक पर सत्सङ्ग का प्रभाव
पुराणों के अनुसार इन्द्र से भयभीत मैनाक की रक्षा पवनदेव ने उसे समुद्र अर्थात जल को सौप कर किया था ।अब पवनदेव और समुद्रदेव के सत्सङ्ग के प्रभाव से उसने जब हनुमानजी माता सीता की खोज में बिना विश्राम किए आकाश मार्ग से जा रहे थे, तब उनसे अपनी सुंदर चोटी पर विश्राम के लिए निवेदन किया। उसकी बातें सुनकर हनुमानजी ने मैनाक को हाथ से छूकर प्रणाम किया । इस प्रकार सत्सङ्ग के प्रभाव से मैनाक पर प्रभु कृपा हुई।
जलनिधि रघुपति दूत बिचारी। तैं मैनाक होहि श्रम हारी॥
हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम॥
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम॥
1-(आ)जलचर-चेतन
मकरी पर हनुमानजी के संग से,ग्राह पर गजेन्द्र के संग से,राघवमत्स्य पर कौशल्याजी के संग से प्रभु कृपा हुई।
और तो और सेतु बन्द के समय का दृश्य देखें जब सभी जलचर कृत कृत्य हो गए-----
देखन कहुँ प्रभु करुना कंदा।
प्रगट भए सब जलचर बृन्दा।।
2-(अ)थलचर-जड़-बृक्ष वन,पर्वत,तृण आदि पर
श्रीरामजी के संग का प्रभाव तो देखते ही बनता है--
बृक्ष- सब तरु फरे रामहित लागी।
रितु अरु कुरितु काल गति त्यागी।।
वन- मंगल रूप भयउ बन तबते।
कीन्ह निवास रमापति जबसे।।
भूमि वन पंथ पहाड़-
धन्य भूमि बन पंथ पहारा।जहँ जहँ नाथ पाऊँ तुम्ह धारा।।
गुरु अगस्त्य के संग से विंध्याचल को परम पद मिला-
परसि चरन रज अचर सुखारी।भये परम पद के अधिकारी।।
2-(आ)थलचर-चेतन-शबरी,कोल-किरात,भील,पशु,वानर,मानव-विभीषण, शुक आदि पर सत्सङ्ग का प्रभाव अद्भुत है--
मतंग ऋषि के संग से शबरी का कल्याण और सद्गति सब जानते ही हैं।
श्री राम जी के संग से कोल-किरात वन्दनीय हो गये--
करि केहरि कपि कोल कुरंगा।बिगत बैर बिचरहिं सब संगा।।
धन्य बिहग मृग काननचारी।सफल जनम भये तुम्हहि निहारी।।
सुग्रीव,विभीषण, शुक को संसार जानता ही है कि सत्संग के प्रभाव से इन्हे कितनी कीर्ति आदि की प्राप्ति हुई।
3-नभचर(अ) जड़ की बात करें
मेघ, वायु आदि पर भक्तराज श्रीभरतजी के संग का प्रभाव है--- कि
किएँ जाहिं छाया जलद सुखद बहइ बर बात।
तस मगु भयउ न राम कहँ जस भा भरतहि जात॥
तस मगु भयउ न राम कहँ जस भा भरतहि जात॥
3-नभचर(आ) चेतन की बात जाननी है तो
कागभुशुण्डिजी से भाग्यशाली कौन जिन पर विप्र और लोमश ऋषि के संग का प्रभाव रहा यही नहीं पंक्षीराज गरुण पर हुवे सत्सङ्ग के प्रभाव को देखें,इन दोनों को अगर छोड़ दे और जटायु तथा सम्पाति पर जो सत्सङ्ग के प्रभाव से ईश्वर कृपा हुई उस पर नजर डाले तो हमें सहज ही आनन्द प्राप्त होता है।
अगर हम इनको दूसरे प्रकार से देखें तो हमें और भी आनन्द मिलेगा ही जैसे-जलचर थलचर नभचर जड़ चेतन को क्रम से मिलाते हैं-मति कीरति गति भूति भलाई तो पाते हैं कि यहाँ यथासंख्य क्रमालंकार है
(1)जहाँ जलचर राघवमत्स्य को माता कौशल्या के संग से मति अर्थात सुमति प्राप्त हुई।
(2) थलचर गजेन्द्र को कीरति मिली और वे अपने गजेन्द्रमोक्ष स्त्रोत्र से अमर हो गये
(3)नभचर जटायु को गति अर्थात सद्गति मिली
(4)जड़ माताअहिल्या जो पत्थर बनी थी उनको भूति मिली अर्थात देवी अहिल्या अपने पति की विभूति को पा गई
(5) चेतन तो असंख्य हैं- उदाहरण के लिए श्री सुग्रीव, जामवन्तजी,हनुमानजी आदि को इतनी भलाई मिली कि स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम परम पिता परमेश्वर श्री राम उनके ऋणी हो गये।
इस प्रकार की पञ्च बिभूति अर्थात संसार में सर्वस्व की प्राप्ति कैसे?वो सब यही स्पष्ट कर दिया है बाबाजी ने-सो जानब सतसंग प्रभाऊ। लोकहुँ बेद न आन उपाऊ॥अर्थात सो सब सत्संग का ही प्रभाव समझना चाहिए। वेदों में और लोक में इनकी प्राप्ति का दूसरा कोई उपाय नहीं है।
और तो और
जो आपन चाहै कल्याना।
सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना॥
सो परनारि लिलार गोसाईं।
तजउ चउथि के चंद कि नाईं॥
अर्थात अगर हम अपना कल्याण चाहते हैं, पंच विभूति सुजसु सुमति सुभ गति सुख या दूसरे शब्दों में मति कीरति गति भूति भलाई चाहते है तो हमें
सो परनारि लिलार गोसाईं।
तजउ चउथि के चंद कि नाईं।।
अर्थात पर स्त्री पर कुदृष्टि डालना छोड़ना ही होगा अन्यथा हमारी क्या गति होगी वह भी देख लें---
बुधि बल सील सत्य सब मीना।
बनसी सम त्रिय कहहिं प्रबीना।।
कामी पुरुष का रावण के समान ऊपर बतायी गयी सभी विभूतियों सहित सर्वस्व नाश हो जाता है। अगर हमें सभी विभूतियों को प्राप्त करना है और उन्हें बनाये रखना है तो हमें सत्सङ्ग करना होगा क्योंकि
बिनु सतसंग बिबेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥
सतसंगत मुद मंगल मूला।
सतसंगत मुद मंगल मूला।
सोई फल सिधि सब साधन फूला॥
आइये हम प्रभु श्रीराम से प्रार्थना करें कि हमें उत्तम सत्संग की प्राप्ति हो और हमारे उनकी कृपा ऊपर सदा बनी रहे ।
।।जय श्रीराम।।
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