।।प्रतीप अलंकार।।
प्रतीप अलंकार
प्रतीप का अर्थ है - विपरीत अथवा उल्टा।
जहाँ उपमेय का कथन उपमान के रूप में तथा उपमान का कथन उपमेय के रूप में कहा जाता है वहाँ प्रतीप अलंकार होता है।अर्थात जहाँ उपमेय को उपमान और उपमान को उपमेय बना दिया जाता है, तब वहाँ प्रतीप अलंकार होता है। दूसरे शब्दों में --"जहाँ प्रसिद्ध उपमान का उपमेय की तुलना में अपकर्ष प्रकट होता है, वहाँ प्रतीप अलंकार होता है।"यह उपमा अलंकार का उल्टा होता है क्योंकि इस अलंकार में उपमान को लज्जित, पराजित या नीचा दिखाया जाता है और उपमेय को श्रेष्ट बताया जाता है।प्रतीप अलंकार के पाँच भेद हैं:-
(1)- जहाँ प्रसिद्ध उपमान को उपमेय और उपमेय को उपमान की तरह प्रयुक्त किया जाता है:-
जैसे:-
1-सखि! मयंक तव मुख सम सुन्दर।
2-बिदा किए बटु बिनय करि फिरे पाइ मन काम।
उतरि नहाए जमुन जल जो सरीर सम स्याम।।
3-लोचन से अंबुज बने मुख सो चंद्र बखानु
(2)-जहाँ उपमान को उपमेय की उपमा के अयोग्य बताया जाता है:-
जैसे:-
1-अति उत्तम दृग मीन से कहे कौन विधि जाहि।
(3)-जहाँ प्रसिद्ध उपमान का उपमेय के द्वारा निरादर किया जाता है अर्थात उपमेय के सामने उपमान को हीन दिखाया जाता है,
जैसे:-
1-तीछन नैन कटाच्छ तें मंद काम के बान।
2- बहुरि बिचारु कीन्ह मन माहीं।
सीय बदन सम हिमकर नाहीं॥
(4)-जहाँ पहले उपमेय की उपमान के साथ समानता बताई जाय अथवा समानता की सम्भावना प्रगट की जाय तथा बाद में उसका खण्डन किया जाता है:-
जैसे:-
1-प्राची दिसि ससि उयउ सुहावा।
सिय मुख सरिस देखि सुखु पावा॥
बहुरि बिचारु कीन्ह मन माहीं।
सीय बदन सम हिमकर नाहीं॥
(5)-जहाँउपमेय के होने की स्थिति में उपमान को व्यर्थ बताया जाता है:-
जैसे:-
1-मुख आलोकित जग करे,कहो चन्द केहि काम।
2-दृग आगे मृग कछु न ये।
अन्य प्रसिद्ध उदाहरण:-
1. चन्द्रमा मुख के समान सुंदर है।
2. गर्व करउ रघुनंदन घिन मन माँहा।
देखउ आपन मूरति सिय के छाँहा।।
3. जग प्रकाश तब जस करै।
बृथा भानु यह देख।।
4 .उसी तपस्वी से लंबे थे,
देवदार दो चार खड़े ।“
5. जिन्ह के जस प्रताप के आगे।
ससि मलीन रवि सीतल लागे।
6.नेत्र के समान कमल है।
7.इन दशनों अधरों के आगे क्या मुक्ता है, विद्रुम क्या?
8. नाघहिं खग अनेक बारीसा।
सूर न होहिं ते सुनु सब कीसा।।
9.भूपति भवन सुभायँ सुहावा।
सुरपति सदनु न पटतर पावा॥
10-गरब करति मुख को कहा चंदहि नीकै जोई।
।।धन्यवाद।।
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