आस्तिन का साँप। serpent
अब मैं भी गया हूँ भाँप।
होते है आस्तिन में साँप।।
मीरजाफ़र जयचंद तब।
अपना बन पराये अब।।
पराये हो जायें अपने जब।
अपने हो जायें पराये कब।।
सर्पेन्ट मर्चेन्ट का कमिटमेंट।
अदृश्य है शॉपिंग सेटेलमेंट।।
हर शाख पे चिपके सर्पेन्ट।
खटमल से होते है परमानेंट।।
आस्तिन के साँप
लेते पहले ही भाँप
पहुँच इनकी सब लोक।
है न कहीं इन्हें रोक टोक।।
सबको जानते
सबको मानते
सब हैं इन्हें पहचानते ।
सबका सब सम्हालते।।
रूप है इनके अनेक
हो प्रगट ये एकाएक
करते प्रहार सविवेक।
होते नहीं ये कही चेक।।
बगुला भगत
शोषण सतत
है ठाव ठाव नित कर्म रत।
देव-दानव को नमन शत-शत।।
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