बुधवार, 28 नवंबर 2012

सरस्वती वन्दना

हे मां,हे मां, भारत-भारती हे मां, हे मां, भारत-भारती !
     अहनिशि तू चराचरो के भाग्य को सवारती !
तु पाणिनी की कौमुदी जो व्याकरण विन्यास करती!
     लोकत्रय कल्याण हेतु सूर्यचन्द्र सा दिन-रात जगती!
हाथ में तू वेदवीणा स्फटिक धर सुर स्वर सवारती सरस्वती!
     चन्द्रकान्ति चन्द्रिका चकोर को स्वाती सा तारती!!
बुद्यिदात्रि बुद्यि दे ज्ञान प्रकाश प्रकाशिनी!
     ब्रह्मचारिणि ब्रह्मविद्या भर सर सरोवर हंसावाहिनी!
दीन-दुःखी दारिद्र दूर दुर्भावना हरो हे वरदायिनी!
     तू सदा दे शुद्धाचरण व धर्म कर्म हे अवलम्बदायिनी!
मानवता भरो मानव मे इन्हें धरो धरा सी धरनी धारती!!
     वर दे वरदान दे मान दे सम्मान दे, दे स्वच्छता हे शारदा!
विजयविभूति विराट विश्व में भक्तों को दे सर्वदा!
     हर हर भक्तजनों की विपरीतता की विपदा!
भर हर मन की आस सुख स्नेह शुभ्र सुखदा!
     स्फटिकमणि वेद ले तू तार वीणा की झंकारती!!
भुवनत्रय त्रिगुण भर गुण संचार कर भुवनेश्वरी !
     भोग संयोग की हो न दासता वाक शक्ति भर वागीश्वरी!
जगत जाने माने पहचाने सत्कर्म से सराबोर कर जगदीश्वरी!
    सब सांस भर सद आस  को सांस रह्ते पुर्ण कर विश्वेश्वरी!
जन-जन संग झूम-झूम जग उतारे तेरी आरती !! 

1 टिप्पणियाँ:

यहां 15 नवंबर 2013 को 5:59 am बजे, Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर आरती।
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माता जी को नमन।
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शब्द पुष्टिकरण हटाइए।
टिप्पणी देने मे अनावश्यक विलम्ब और उलझन होती है।

 

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