।।यमक अलंकार।।
।।यमक अलंकार।।
यह प्रमुख शब्दालंकार है।
परिभाषा:- वही शब्द पुनि पुनि परे,अर्थ परे जब होय।
यमक अलंकार ही है,जान जाय सब कोय।।
अर्थात
जब काव्य में एक ही शब्द बार-बार भिन्न-भिन्न अर्थ में आये तब वहाँ यमक अलंकार होता है। दूसरे शब्दों में एक शब्द की एकाधिक आवृत्ति अलग-अलग अर्थों में होने पर यमक अलंकार होता है।
इस परिभाषा से यह भी सिद्ध हो रहा है कि यमक अलंकार आवृत्तिमूलक अलंकार है।
यमक का शाब्दिक अर्थ दो होता है अतः एक ही शब्द का कम से कम दो बार भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयुक्त होना आवश्यक होता है, दो से अधिक बार भी भिन्न-भिन्न अर्थों में एक ही शब्द आये तो भी यमक अलंकार ही होता है।
इसके दो प्रमुख भेद हैं।
(1)अभंगपद यमक अलंकार और
(2)सभंगपद यमक अलंकार
ध्यान रखें कि वाक्य आदि में प्रयुक्त शब्द को पद भी कहते हैं।
(1)अभंगपद यमक अलंकार
परिभाषा:-
जब शब्द, भिन्न-भिन्न अर्थों में स्पष्ट रुप से पूर्ण पद में हो तो वहाँ अभंगपद यमक अलंकार होता है।
अभंग का सीधा अर्थ है, प्रयुक्त पद को अलग-अलग करके या एक-दो पदों को जोड़करके अर्थ निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
उदाहरण:-
(1) कनक कनक ते सौ गुनी,मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराय नर, वा पाये बौराय।।
यहाँ दो शब्द कनक और बौराय दो-दो बार आये है लेकिन केवल कनक कनक में ही अभंगपद यमक अलंकार है क्योंकि इसी के दो अर्थ क्रमशः धतूरा और सोना हो रहे हैं। बौराय का एक ही अर्थ पागल होना, दोनों बार हो रहा है अतः बौराय में यमक अलंकार नहीं है।
(2) जेते तुम तारे तेते नभ में न तारे हैं।
यहाँ तारे के क्रमशःदोअर्थ मुक्ति देनाऔर तारा(stars) होने के कारण अभंगपद यमक अलंकार है।
(3) सजना है मुझे सजना के लिये।
यहाँ सजना के क्रमशः दो अर्थ सँवरना और पति/प्रेमी होने के कारण अभंगपद यमक अलंकार है।
(4) दई दई क्यों करत है दई दई सो कबूल।
यहाँ दई दई के क्रमशः दो अर्थ हे भगवान हे भगवान और भगवान ने जो दिया है वह होने के कारण अभंगपद यमक अलंकार है।
(5) हरि बोले हरि ही सुने,हरि गे हरि के पास।
हरि हरि में कूद गये, हरि हो गये उदास।।
इस दोहे का अर्थ है मेढक ने बोला साँप ने सुना, साँप मेढक के पास गया ,मेढक पानी में कूद गया ,साँप उदास हो गया। इस प्रकार यहाँ हरि पद के भिन्न-भिन्न अर्थ होने के कारण अभंगपद यमक अलंकार है।
(6) मूरति मधुर मनोहर देखी।
भयेउ विदेह विदेह विसेखी।
यहाँ विदेह पद का क्रमशः राजा जनक और देह की सुधि भूला हुआअर्थ होने के कारण अभंगपद यमक अलंकार है।
(2) सभंगपद यमक अलंकार
जब शब्द भिन्न-भिन्न अर्थों में स्पष्ट रुप से पूर्ण पद में नहीं लिखे हो तब सभंगपद यमक अलंकार होता है।
सभंग का सीधा अर्थ प्रयुक्त पद को अलग-अलग करके या एक-दो पदों को जोड़करके ही अर्थ निकलता है।
उदाहरण:-
(1) पच्छी परछीने ऐसे परे पर छीने बीर।
तेरी बरछी ने बर छीने है खलन के।।
यहाँ परछीने-पर छीने और बरछी ने-बर छीने में सभंग पद यमक अलंकार है।
अन्य उदाहरण--
(2) माला फेरत जुग भया फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि दे मन का मन का फेर।।
यहाँ मन का और मनका में सभंग पद यमक अलंकार है।
(3) कुमोदिनी-मानस-मोदिनी कहीं।
यहाँ 'मोदिनी' में यमक है।पहला मोदिनी 'कुमोदिनी' शब्द का अंश है, दूसरा स्वतंत्र शब्द है प्रसन्नता देने वाली है।
(4) पास ही रे हीरे की खान।
खोजता कहाँ रे नादान।।
यहाँ ही रे और हीरे में सभंग पद यमक अलंकार है।
(5) या मुरली मुरलीधर की
अधरान धरी अधरा न धरौगी।।
यहाँ मुरली अर्थात बाँसुरी, मुरलीधरअर्थात कृष्ण में मुरली की आवृत्ति होने के कारण सभंगपद यमक अलंकार है।
यमक अलंकार के विशेष उदाहरण भी देखते हैं---
(1) नाग चढ़ा जब नाग पर,नाग उठा फुँफकार।
नाग नाग को नागता, नाग न मानें हार।।
यहाँ नाग शब्द का यमक देखने लायक हैं- नाग के अर्थ क्रमशः हैं-- हाथी, पर्वत, सर्प, बादल, पर्वत, लाँघना, जनजाति।अर्थात जब हाथी पर्वत पर चढ़ा, सर्प
फुँफकार उठा,वहाँ बादल पर्वत को लाँघ रहा था फिर भी जनजाति के लोग युद्ध में हार नहीं मान रहे थे।
(2)झलके पद बनजात से, झलके पद बनजात।
अहह दई जलजात से, नैननि सें जल जात।।
प्रथम पंक्ति में 'झलके' के दो अर्थ 'दिखना' और 'छाला' तथा 'बनजात' के दो अर्थ 'पुष्प' तथा 'वन गमन' हैं। अतः यहाँ अभंगपद यमक अलंकार है।और
द्वितीय पंक्ति में 'जलजात' और 'जल जात' के अर्थ क्रमशः 'कमल-पुष्प' और 'अश्रु- पात' हैं जहाँ सभंगपद यमक अलंकार है।
।। धन्यवाद ।।
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उपयोगी और ज्ञानवर्धक पोस्ट।
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