मेरी धर्म पत्नी
"धैर्य की साधना : संघर्ष से साधुता तक"
धूप तेज़ थी, राह कठिन थी।
किन्तु वह महिला, एक साध्वी की भांति, निर्विकार बैठी है — उसकी आँखों में स्थिर विश्वास का दीप जल रहा है।
उसके पीछे विराट शंख, सृष्टि के आदि नाद का प्रतीक बनकर खड़ा है, मानो स्वयं सृष्टि उसकी तपस्या को प्रणाम कर रही हो।
शंख पर अंकित है भगवद्गीता का दिव्य वचन:
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मासंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥
वह महिला कोई साधारण यात्री नहीं है।
उसका जीवन स्वयं एक तीर्थ बन चुका है — जहाँ हर संघर्ष एक तपस्या है, हर हार एक शिक्षा है, और हर आँसू एक मोती है।
उसने सीखा है —
"जैसे समुद्र अपने भीतर तूफान छुपाकर भी स्थिर रहता है, वैसे ही सच्चा धैर्य भीतर से मजबूत होता है।"
उसकी मुस्कान कह रही है —
"न हार से डरना, न थकान से हारना।
जीवन के हर कठिन मोड़ पर, बस स्वयं पर विश्वास रखना।"
वह महिला कोई और नहीं मेरी धर्म पत्नी श्रीमती उषा देवी है।वह स्वयं एक जीवित श्लोक है:
"क्षमया भूषिता लक्ष्मीः शौर्येण भरिता श्रियम्।
धैर्येण धारिता पृथ्वी सत्यमेव परं बलम्॥"
(अर्थ: क्षमा सौंदर्य है, शौर्य ऐश्वर्य है, धैर्य पृथ्वी की धुरी है, और सत्य ही परम बल है।)
इसलिए —
जब पथरीली राहों पर कदम डगमगाएँ,
जब सूर्य की किरणें चुभने लगें,
जब जीवन थका देने लगे —
तो स्मरण करो इस शांत छवि को।
बैठो, सांस लो, और जानो:
"तुम भी वही शक्ति हो, जो सदियों से विजेता बनती आई है।"
छोटा सारांश वाक्य भी:
"धैर्य ही वह दीप है, जो जीवन की सबसे अंधेरी रातों को भी आलोकित कर देता है।
गिरिजा शंकर तिवारी "शांडिल्य"


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