।।समासोक्तिअलंकार-SpeechofBrevity।।
समासोक्ति अलंकार -Speech of Brevity
जहाँ प्रस्तुत के वर्णन में अप्रस्तुत की प्रतीति हो वहाँ समासोक्ति अलंकार होता है।दूसरे शब्दों में जब प्रस्तुत वृत्तान्त के वर्णन किये जाने पर विशेषण के साम्य से अप्रस्तुत वृत्तान्त का भी वर्णन हो जाता तब समासोक्ति अलंकार होता है।
यहाँ वास्तव में संक्षिप्त उक्ति के द्वारा प्रस्तुत और अप्रस्तुत दोनों के अर्थ का स्पष्ट बोध होता है।आचार्य विश्वनाथ के अनुसार:-
प्रस्तुतादप्रस्तुतप्रतीति: समासोक्ति- साहित्यदर्पण।
प्रस्तुतादप्रस्तुतप्रतीति: समासोक्ति- साहित्यदर्पण।
समासोक्ति शब्द, समास+उक्ति से मिलकर बना है जिसका अर्थ है संक्षेप कथन।
प्रस्तुत का वर्णन हो और अप्रस्तुत की प्रतीति हो- यही संक्षेप कथन है।
यह संक्षेप कथन विशेषण, लिंग तथा कार्य के साम्य के आधार पर हो सकता है।
यह संक्षेप कथन विशेषण, लिंग तथा कार्य के साम्य के आधार पर हो सकता है।
वस्तुतः समासोक्ति का मूल मन्त्र है---
"प्रस्तुत के वर्णन से अप्रस्तुत की प्रतीति हो जाना"
तभी तो समासोक्ति के बारे में यह भी प्रसिद्ध है:
“परोक्ति भेदकै: श्लीष्टः समासोक्तिः ”
उदाहरण:
1-जग के दुख दैन्य शयन पर यह रुग्णा जीवन- बाला।
रे कब से जाग रही वह आँसू की नीरव माला।
पीली पर निर्बल कोमल कृश देहलता कुम्हलाई।
विवसना लाज में लिपटी साँसों में शून्य समाई।। यहाँ लिंगसाम्य के कारण निष्प्रभ चाँदनी के वर्णन से बीमार बालिका की प्रतीति हो रही है, अतः यहाँ 'समासोक्ति' अलंकार है।
पीली पर निर्बल कोमल कृश देहलता कुम्हलाई।
विवसना लाज में लिपटी साँसों में शून्य समाई।। यहाँ लिंगसाम्य के कारण निष्प्रभ चाँदनी के वर्णन से बीमार बालिका की प्रतीति हो रही है, अतः यहाँ 'समासोक्ति' अलंकार है।
2-लोचन मग रामहि उर आनी।
दीन्हें पलक कपाट सयानी।।
यहाँ राम को सीता द्वारा हृदय बंदी बनाया जाना प्रतीत होता है।
3-उयउ अरुन अवलोकहु ताता।
पंकज कोक लोक सुख दाता।।
यहाँ अरुनोदय से पंकज,कोक,लोक के सुखी होने में
सीता,जनक,सुनयना सखियों-नगरवासियों के सुखी होने की स्पष्ट प्रतीति हो रही है।
कुछ और अद्भुत उदाहरण देखें--
4-बाहु तुम्हारी छूकर भर उठती थी जो उल्लास से।
दुर्बल, हत-सौन्दर्य जय श्री है तव चिर वियोग के त्रास से॥5-ग्रह ग्रहीत पुनि बात बस तेहि पुनि बीछी मार।
तेहि पिआइअ बारुनी कहहु काह उपचार॥
6-श्रुति संमत हरि भक्ति पथ संजुत बिरति बिबेक।
तेहिं न चलहिं नर मोह बस कल्पहिं पंथ अनेक॥
7-सिंधु-सेज पर धरा बधूअब,तनिक संकुचित बैठी सी।
प्रलय-निशा की हलचल स्मृति में,मान किए सी ऐंठी सी।
धन्यवाद
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