।।बादल।।cloud hindi poem
हे बादल!गरज गरज तू बरस बरस।
नव जीवन प्रकृति-पुरुष का तू सर्वस।
धन-धान्य धरती धरती पा तेरा रस।
जल जीवन तू जन जीवन रस।।
प्रकृति नटी पल पल छिन छिन है सज रही।
तू धरती का पालक यह जन जन से कह रही।
नर-बादल छाए हुए हैं जो उन्हें मान है दे रही।
नर नरत्व मत छोड़ मेरे बादल से तू सिख सही।।
बादल तेरा गर्जन-तर्जन आशा-बीज धरा का।
तेरा हर दर्शन बहु रुप दिखाता है जन-मन का।
तू भूमि गगन तू वायु अनल तू प्राण हर प्राणी का।
तू मेघ नहीं तू दूत सही इस धरती के हर नर-नारी का।।
नीरद तू मानव जीवन दाता सुख-शान्ति भ्राता।
अद्भुतं तेरी माया अद्भुत तेरी काया जन त्राता।
सावन-भादो माह बिन कौन जहां है रह पाता।
इंद्र-धनुष की अद्भुत छठा तू ही है हमें दिखाता।।
महाकाल महाबली महारस महि मह महकाता।
मन-मयूर मतवाला हर जगत में तेरा गुन गाता।
हे नर-अम्बुद!वारिद से तू सहज सरल सिख पाता।
कथनी-करनी की तरनी तू सहज आज चढ़ जाता।।
जो गरजते हैं ओ बरसते नहीं है पुरानी रीति।
गरजते हैं बरसते हैं तोड़ कर सर्वदा भय-भीति।
नव नव बादल दिखाते आज यहाँ नव नव नीति।
नाश त्याग विकास का हाथ पकड़ कर नव प्रीति।।
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