शनिवार, 15 जनवरी 2022

मानस चर्चा (अनुसूया)

                   मानस चर्चा (अनुसूया)
अनुसुइया के पद गहि सीता। मिली बहोरि सुसील बिनीता॥
रिषिपतिनी मन सुख अधिकाई। आसिष देइ निकट बैठाई॥
अनुसूया कौन
न गुणान् गुणिनो हन्ति स्तौति मन्दगुणानपि।
नान्यदोषेषु रमते सानसूया प्रकीर्तिता।।
अनुसूयाजी का सतीतत्व कैसा
1:-माता अनुसुइया  ने डाल दिया पालना ,
    झूल रहे तीन देव बनकर के लालना.
 ब्रह्मा ,विष्णु,महेश का क्रमशः सोम,दत्तात्रेय और दुर्वासा के रूप में पुत्र बनना
2:- सूर्य को रोक लेना
3:-अकाल के समय कन्द-मूल, फल  की उत्त्पत्ति ,पति सेवा 4:-माँ गंगा की परीक्षा में उत्तीर्ण होना 
 माँ गंगा द्वारा शिव आराधना और पति सेवा के एक वर्ष का फल माँगना और बदले में   मंदाकिनी बनकर माँ गंगा का चित्रकूट में रहना।
सीताजी को दिव्य वस्त्र क्यों
अजहु तुलसिका हरिहि प्रिय
माँ अनुसूया को पता है कि तुलसी अर्थात परम सती असुराधिप नारी, बृंदा के शाप  के कारण सीता हरण तय है।
तभी तो
दिब्य बसन भूषन पहिराए। जे नित नूतन अमल सुहाए॥
सीताजी को नारी धर्म का उपदेश क्यों
कह रिषिबधू सरस मृदु बानी। नारिधर्म कछु ब्याज बखानी॥
नारी के लिये सभी रिश्तों से पति का रिश्ता बड़ा क्यों
माँ अनुसूया के मुख से
मातु पिता भ्राता हितकारी। मितप्रद सब सुनु राजकुमारी॥
अमित दानि भर्ता बयदेही। अधम सो नारि जो सेव न तेही॥
सीताजी के मुख से
मातु पिता भगिनी प्रिय भाई। प्रिय परिवारु सुहृदय समुदाई॥
सासु ससुर गुर सजन सहाई। सुत सुंदर सुसील सुखदाई॥
जहँ लगिनाथ नेह अरु नाते। पिय बिनु तियहि तरनिहु ते ताते॥
तनु धनु धामु धरनि पुर राजू। पति बिहीन सबु सोक समाजू॥
 सीताजी को धैर्य-धर्म का उपदेश क्यों
धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी॥
Calamity is the touchstone of a brave mind.
असम्भवं हेममृगस्य जन्मः तथापि रामो लुलुभे मृगाय ।
प्रायः समापन्न विपत्तिकाले धियोSपि पुंसां मलिनी भवन्ति।
    पुरूषों की बुद्धि मलिन हो जाय और परिणाम स्वरूप  अनहोनी हो जाय तो भी यदि  नारी धैर्य रखने वाली ,धर्म का पालन करने वाली और  मित्रवत व्यवहार करने वाली है तो ऐसे आपद कालीन समय की परीक्षा को भी चतुराई से उत्तीर्ण किया जा सकता है।
                    जय श्रीराम
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