मंगलवार, 22 मार्च 2022

।।अद्भुत श्लोक मानस का प्रथम श्लोक।।

   ।।अद्भुत श्लोक मानस का प्रथम श्लोक।। 
 मानस चर्चा में आप का स्वागत है। आज हम मानस के एक ऐसे  अदभुत  श्लोक के बारे में चर्चा करेगें जिसके नित्य स्मरण ,पाठ करने से हमें प्रथम पूज्य श्री गणेश, माँ सरस्वती, माँ सीता, प्रभु श्रीराम, श्रीवरुणदेव और माँ वसुन्धरा  इन छः शक्तियों की कृपा प्राप्त होती ही है ।वह अद्भुत श्लोक है मानस का प्रथम श्लोक:-
वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।
मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ।
 हम चर्चा में छः शक्तियों के साथ ही साथ इस श्लोक की अन्य विशेषताओं पर भी विचार करेगें। आइए हम पहले  यह जानते है कि यह दिव्य श्लोक कैसे छः शक्तियों की कृपा प्राप्ति का दिव्य श्रोत है।
    यहाँ  पद के अंत में जो वन्दे वाणीविनायकौ आया  है उससे स्पष्ट ही है कि ज्ञान दात्री माँ सरस्वती और प्रथम पूज्य गणेशजी की वन्दना की गयी है।
लेकिन यहाँ विचारने योग्य यह है कि वाणी पहले, विनायक बाद में क्यों?
जबकि विनायक प्रथम पूज्य हैं।
शंका समाधान के रुप में कबीरदास जी का दोहा देखें-
गुरू गोविन्द दोउ खड़े, काको लागूं पांय।
बलिहारी गुरू आपणे, गोविन्द दियो बताय।।
अर्थात जिसने ज्ञान दिया उनका स्थान प्रथम,उनकी वन्दना पहले उनको धन्यवाद पहले।इसीलिए तो यहाँ
वाणीविनायकौ कहा गया क्योंकि देवी सरस्वती की कृपा से ही हम गणेशजी के बारे में विस्तार से जानते हैं।
इस प्रकार अद्वितीय ढंग से माँ सरस्वती और प्रथम पूज्य गणेश की वन्दना स्पष्ट हो रही है।
       जब हम प्रथम पद वर्णानामर्थसंघानां पर विचार करते है तो मानस का यह दोहा बरबस ही  हमारा ध्यानअपनी ओर खीच लेता है।
 गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिन्न न भिन्न।
 बंदउँ सीता राम पद   जिन्हहि  परम  प्रिय   खिन्न॥ 
   यहाँ गिरा अर्थात वर्ण  कौन, अरथ अर्थात अर्थ  कौन,सीधी सी बात है माँ सीता और प्रभु श्रीराम ही है जिनकी वन्दना की जा रही है और तो और सम्पूर्ण मानस में यही तो हैं।
   वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि  स्पष्ट कर ही देता है कि  :-
आखर अरथ अलंकृत नाना। 
छंद  प्रबंध  अनेक  बिधाना।। 
भाव  भेद  रस   भेद    अपारा। 
कबित दोष गुण बिबिध प्रकारा।।  
       इनका हमारे जीवन में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है।
 हमें इनको जिन्होंने सुलभ कराया हमें उनकी वन्दना करनी ही है। 
अब बात आती है वर्णानां पद की 
जो मगण SSS गण का है जिसमे सभी वर्ण गुरू अर्थात दीर्घ होते हैं।जो हमें बताता है कि हम अपने जीवन- पथ की सभी बाधाओं पर भारी पढ़ेगें।
औऱ मगण के देवता हैं भूमि अर्थात वसुंधरा जो दिव्य गुणों को उपजाती हैं,मंगलश्री का विस्तार करती हैंऔर सदा के लिए जीव मात्र पर कृपालु हैं। इस प्रकार यहाँ माँ वसुंधरा की वन्दना भी की जा रही है जिनकी कृपा प्राणियों पर हमेशा ही रहती है।और तो और हम प्रार्थना भी करते हैं-
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे ।।
जब हम भूमि की वन्दना करेगें तो भूमि सुता  किशोरीजी की कृपा मिलेगी ही।
एक और बात 
रामचरितमानस के प्रत्येक सोपान के प्रथम श्लोक मगण से ही प्रारम्भ हैं।प्रथम सोपान का यह श्लोक हमारे सामने ही है। 
यही नहीं 
यह श्लोक  सातों सोपानों/काण्डों की भी स्पष्ट भूमिका भी है 
वर्णानां  बालकांड की 
अर्थसंघानां  अयोध्या कांड की
रसानां  अरण्यकांड की
छन्दसां किष्किंधा कांड की
अपि  निश्चित रूप से जो सुन्दर है उस सुंदरकांड की मंगलानां राक्षसों को मुक्ति दिलाकर जो सर्वत्र मंगल करने वाला है  उस लंकाकांड की 
और कर्तारौ  जहाँ प्रभु श्रीराम चक्रवर्ती राजा बने उस उत्तरकांड की ।
      इस श्लोक/मंत्र का छन्द  संस्कृत साहित्य का प्रथम छन्द अनुष्टुप छन्द है  जिसके सभी चरण सम होकर हमें हर स्थिति में सम रहना सिखाते हैं, हर चरण  आठ-आठ वर्ण में  सभी पूज्य जनों ,देवों को अष्टांग/साष्टांग प्रणाम निवेदित करना बताते हैं।
इसके बत्तीस वर्ण सीताराम के 16+16 = 32 गुणों को धारण करने के लिए हमें प्रेरित करते हैं।
     आगे हम पाते हैं कि वाणी विनायकौ का व वर्ण जीवन देव जल अर्थात वरुण देव के मंत्र. ॐ वं   वरुणाय नमः में बीज मंत्र है और इस प्रकार यहाँ वरुण देव की भी वन्दना की जा रही है। 
तीनों लोकों में  वरुण देव अपना प्रभाव सर्वत्र रखते ही हैं।तभी तो इनके बीज मन्त्र के वर्ण ( व )से ग्रन्थ को सम्पुट करने के लिए 
वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि।   
मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ।
से ग्रंथ का शुभारम्भ और
पुण्यं पापहरं सदा शिवकरं विज्ञानभक्तिप्रदं।
मायामोहमलापहं सुविमलं प्रेमाम्बुपूरं शुभम्‌।
श्रीमद्रामचरित्रमानसमिदं भक्त्यावगाहन्ति ये
ते संसारपतंगघोरकिरणैर्दह्यन्ति नो मानवाः॥
से ग्रंथ का अवसान कर  वरुण देव के बीज मंत्र व से ग्रंथ को सम्पुटित किया गया है। बीज से प्रारम्भ बीज से समापन ।
हम पाते है कि इस मंत्र/श्लोक में प्रयुक्त कारक सम्बन्ध कारक  है अर्थात् षष्टी विभक्ति है । यह कारक भी छः की और संकेत  कर रहा है।अतः  हर प्रकार से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस श्लोक द्वारा  छः शक्तियों देवी सरस्वतीजी, प्रथम पूज्य गणेशजी,माँ जनक सुता जग जननी जानकी,प्रभु श्रीराम, भूमि और वरुण देव की वन्दना की गयी है फलतः इस श्लोक/मंत्र के पाठ मात्र,  स्मरण मात्र  से  आप सभी छः देवों  की कृपा हमें प्राप्त होती ही  है।
वास्तव में ये सभी मङ्गलानां च कर्त्तारौ  हमारे जीवन में  हर पग हमारा मंगल करते रहे इसी शुभकामनाओं के साथ आप सभी का गिरिजा शंकर तिवारी।
।।जय श्रीराम जय हनुमान संकटमोचन कृपानिधान।।
                     ।।धन्यवाद।।

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