शनिवार, 21 अगस्त 2021

कृष्णजन्माष्टमी

     ।।देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते।।
कृष्ण. वह नाम है..जिस नाम में दिव्य आकर्षण  है  जो अनंत काल से जन मन मानस पर छाया है। कृष्ण चरित्र जितना मोहक है उतना ही रहस्यमय,जितना चंचल है उतना ही गंभीर, जितना सरल, उतना ही जटिल मानो प्रकृति का हर रूप  उनके व्यक्तित्व में समाहित है। जन्माष्टमी पर्व  हमें कृष्ण की मनोहारी लीलाओं का संस्मरण करवाते हुवे उन लीलाओं के गूढ़ अर्थ को समझने हेतु लालायित करता है।
यह पर्व कृष्ण के लोकनायक, संघर्ष शील, पुरुषार्थी, कर्मयोगी ,युगांधर और जगद्गुरु होने केमहत्त्व को प्रतिपादित करता है। विष्णु का सोलह कला युक्त कृष्ण अवतार अद्भुत है, सीमारहित है, व्याख्या से परे है।कृष्ण की विराटता, अनंतता और सर्व कालिक प्रासंगिकता ही कृष्ण तत्त्व के प्रति असीमित आकर्षण का कारण है। 
 श्रीकृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण जो विष्णु के आठवे अवतार है उनका जनमोत्सव है।भाद्रपद मास के कृष्ण  पक्ष की अष्टमी को इनका जन्म हुआ था इसलिए प्रत्येक वर्ष भाद्र कृष्ण अष्टमी को बहुत ही श्रद्धा भाव से श्रद्धालुजन भगवान श्री कृष्ण का जन्मदिन जन्माष्टमी के नाम से मनाते हैं।
जो जन्माष्टमी व्रत को  करते हैं वे सदैव स्थिर लक्ष्मी प्राप्त करते हैं उनके समस्त कार्य सिद्ध होते हैं। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इस व्रत को करने से  महान पुण्य राशि प्राप्त होती है। जगद्गुरु श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव नि:संदेह सम्पूर्ण विश्व के लिए आनंद-मंगल का संदेश देता है। शास्त्रों में कहा गया है कि   भाद्र कृष्ण पक्ष, अर्धरात्रि,  अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र, वृष राशि में चंद्रमा, इनके साथ सोमवार या बुधवार का होना श्रेष्ठतम फलदायक होता  है।  इस संयोग में जन्माष्टमी व्रत करने से तीन जन्मों के जाने-अनजाने  पापों से मनुष्य मुक्त हो जाता है। इस संयोग में जन्माष्टमी व्रत करने से व्रती प्रेत योनी में भटक रहे पूर्वजों को प्रेत योनि से मुक्त करवा देता है।जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण के लड्डू गोपाल स्वरूप के पूजन का विधान है ऐसी मान्यता है कि
      देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते ।
     देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।।
 मंत्र का जन्माष्टमी पर जाप करने से मन वांछित संतान की प्राप्ति  होती है।
  मैं भगवान श्री कृष्ण के बाल मुकुन्द और सच्चिदानंद स्वरूप की वंदना करते हुवे इस पावन
पर्व पर जगत कल्याण की कामना करता हूँ।
करारविन्देन पदारविन्दं
मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् ।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं
बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥
   ॐ सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे! 
    तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम: ।।
             ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
                   ।। धन्यवाद।।
              ।।श्री कृष्णाष्टकम्।।
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || १ ||
आतसीपुष्पसंकाशम् हारनूपुरशोभितम्
रत्नकण्कणकेयूरं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || २ ||
कुटिलालकसंयुक्तं पूर्णचंद्रनिभाननम्
विलसत्कुण्डलधरं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ३ ||
मंदारगन्धसंयुक्तं चारुहासं चतुर्भुजम्
बर्हिपिञ्छावचूडाङ्गं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ४ ||
उत्फुल्लपद्मपत्राक्षं नीलजीमूतसन्निभम्
यादवानां शिरोरत्नं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ५ ||
रुक्मिणीकेळिसंयुक्तं पीतांबरसुशोभितम्
अवाप्ततुलसीगन्धं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ६ ||
गोपिकानां कुचद्वन्द्व कुंकुमाङ्कितवक्षसम्
श्री निकेतं महेष्वासं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ७ ||
श्रीवत्साङ्कं महोरस्कं वनमालाविराजितम्
शङ्खचक्रधरं देवं कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् || ८ ||
कृष्णाष्टकमिदं पुण्यं प्रातरुत्थाय यः पठेत् |
कोटिजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनष्यति ||
|| इति कृष्णाष्टकम् ||

॥ बालमुकुन्दाष्टकं ॥
करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् ।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 1 ॥

संहृत्य लोकान्वटपत्रमध्ये शयानमाद्यन्तविहीनरूपम् ।
सर्वेश्वरं सर्वहितावतारं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 2 ॥

इन्दीवरश्यामलकोमलाङ्गम् इन्द्रादिदेवार्चितपादपद्मम् ।
सन्तानकल्पद्रुममाश्रितानां बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 3 ॥

लम्बालकं लम्बितहारयष्टिं शृङ्गारलीलाङ्कितदन्तपङ्क्तिम् ।
बिम्बाधरं चारुविशालनेत्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 4 ॥

शिक्ये निधायाद्यपयोदधीनि बहिर्गतायां व्रजनायिकायाम् ।
भुक्त्वा यथेष्टं कपटेन सुप्तं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 5 ॥

कलिन्दजान्तस्थितकालियस्य फणाग्ररङ्गेनटनप्रियन्तम् ।
तत्पुच्छहस्तं शरदिन्दुवक्त्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 6 ॥

उलूखले बद्धमुदारशौर्यम् उत्तुङ्गयुग्मार्जुन भङ्गलीलम् ।
उत्फुल्लपद्मायत चारुनेत्रं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 7 ॥

आलोक्य मातुर्मुखमादरेण स्तन्यं पिबन्तं सरसीरुहाक्षम् ।
सच्चिन्मयं देवमनन्तरूपं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ 8 ॥



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