मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

स्वानुभूति (एक आत्मकथा)

प्राक्कथन:-पूज्य पाद पद्मों में कोटिशःनमन।सुधार सुझाव सतत वरन।इस आत्मकथा लेखन से पूर्व मैं उन सभी का तहे दिल से आभारी हूँ जिन्होंने जाने अनजाने मुझे इस हेतु प्रेरणा दिया,सहयोग दिया,जानकारी दिया ,सामग्री दिया ,ज्ञान दिया व आशीर्वाद दिया।अग्रज मोटका भैया का प्यार इस हेतु हमेशा अविस्मरणीय रहेगा।पिताश्री की छबि माताश्री का सर्वस्व जेहन ज्योति जगाये रखेगा।सहोदरों का अवर्णनीय स्नेह, प्यार, दुलार व आशीर्वाद अग्रजों का पथप्रदर्शन अनुजों का सहयोग पूर्वजों का वरदहस्त वंशजों का अनमोल लाड इस कार्य में मेरा अनवरत सहयोग करता रहेगा और इसकी पूर्णता में मदद करेगा।अतः सभी से विनम्रता पूर्वक आग्रह है कि कहीँ भी कोई त्रुटि या अभिमान हो तो उसे नासूर की तरह जड़ से मिटाकर इस कार्य को सदा सही करवाने में अपना अमूल्य सहयोग देवे।ज्ञाताज्ञात तथ्यों के आधार पर मेरा निम्न प्रयास आपसे सदा सहयोग की अपेक्षा करता रहेगा।
आप सबका
गिरिजा शंकर तिवारी
               
    मानव स्व वर्ग विकास से उत्साहित एवं प्रसन्न होता है ।मैं इसी विकास के क्रम में सरकारी अभिलेखनुसार 18 सितम्बर;1969 को ऋषि प्रवर आचार्य शाण्डिल्य की द्वितीय शाखा गर्दभमुख(गोमुख)गोत्र के तिवारी परिवार के सदस्य श्री विंदेश्वरी तिवारी के प्रपौत्र व श्री जगत नारायण तिवारी के चतुर्थ पुत्र के रूप में ममतामयी माँ मेवाती देवी के कोख से ग्राम तिलौली पत्रालय भैदवा जनपद देवरिया प्रान्त उत्तर प्रदेश देश भारत महान में पैदा हुवा।इस गाँव में सम्पूर्ण ब्राह्मण एक ही जाति के हैं जो विश्व के सर्वोत्तम श्रेष्ट कुलीन त्रि प्रवर वाले सामवेदी ब्राह्मण हैं।सर्वहारा वर्ग ही इस गाँव में रहता है।पूर्व काल में सर्वहारा वर्ग की निम्न श्रेणी के दर्द से इस गाँव के ब्राह्मणों का चोली-दामन सम्बन्ध रहा।मल्ल परिवार की भी यहाँ अस्मिता है।राजपूत भी शिवालय साथ शोभित हैं।इस गाँव से दक्षिण रेलवे लाइन के उस पार स्वर्ण नगरी की तरह तीन दिशाओं से पूर्णतः और पूरब से आंशिक जल स्रोतों से घिरा तथा पूरब से ही आंशिक खुला गाँव है कटियारी जहाँ से आकर इस गाँव में प्रथम पंडित ने अपना आवास बनाया जो इस गाँव के आदि पुरुष श्री नन्दू तिवारी हैं।आदि पुरुष के साथ ही साथ अनेक संवर्गों ने यहाँ स्थान लिया।उनमें यदुवंशी ,हरिजन,नट,चौहान,लोहार और कोहार हैं।आज गाँव चहुमुखी विकास की ओर अग्रसर है पर किसी भी वर्ग से मेरी जानकारी में अबतक प्रशासनिक सेवा में कोई नहीँ है जो अबतक हो जाना ही चाहिए।इसके पूरब में टीकर,चकरा,करौदीआदि पश्चिम में तालाब फिर बरसात,अमाव,बड़कागांव आदि उत्तर में तालाब फिर भैदवा,ब्रह्मचारी,मरकड़ा, शुक्लपुर आदि और दक्षिण में धौला पंडित,भरहा,नेदुवा,गोपवापर आदि गाँव हैं।गाँव की सीमा में शिवालय शोभित है,माताजी का चबूतरा,बरम बाबा,सती माई,डीह बाबा, कटारी बाबा आदि स्थापित पूजित देवस्थान हैं।पोखरा पर नवनिर्मित समस्त ग्रामवासियों के श्रद्धा का केंद्रविन्दु सबके सहयोग से निर्मित माँ दुर्गा का मंदिर जिसके नींव की प्रथम ईट का माँ विंध्यवासिनी के धाम से पूजन करवाकर लाने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुवा हमारे गाँव की शोभा नव नव बड़ा रहा है।वही प्राथमिक विद्यालय भी है।इस प्रकार विकासशील है।रोजी-रोटी की तलाश में अच्छी खासी आबादी राज्य,देश-विदेश के विभन्न गांवों-नगरों के विकास में अपना-अपना योगदान दे रही है।मूल गाँव से लगभग एक किलोमीटर पूरब आम्रकुंजो में लोहार-कोहार व चौहान के दो परिवारों ने प्रथमतःअपना निवास बनाया।जिसे उस समय नोनिया टोला नाम दे दिया गया था जहाँ कभी हमारा घोठा हुवा करता था।अब हमारा भी वही घर है और उसका नाम तिवारी टोला हो गया है।हमारे आदि पुरुष से चार विकास पुरुषों ने जन्म लिया था जिनमें से एक विशेष कारणों से पूर्ण आयु से पहले ही देवलोक गमन कर गये जो हमारे खानदान के बरम बाबा है जिनका चौरा हमारे चाचा के दरवाजे पर है।इनके अतिरिक्त तीन और विकास पुरुषों में से एक श्री दुर्गा चरन तिवारी से गाँव की बाबा पट्टी है जिनमें सेआज जीता बाबा,बिरजा बाबा,मुखिया बाबा,बिहारी बाबा परिवार है जिनमें से कुछ बारीपुर में बस गए हैं।ये अन्यत्र भी हैं।तृतीय विकास पुरुष टेड़ी पट्टी के जनक श्री जमुना तिवारी हैं  इनमें श्री रामायन तिवारी ,श्रीरामकृपाल तिवारी,श्रीभुवनेश्वर तिवारी,श्री भांदत्त तिवारी,श्री फुल्लन तिवारी,श्री राधे श्याम तिवारी,श्री सरयू तिवारी एवम् श्री ध्रुव नारायण तिवारी का परिवार आता है जो तिलौली के साथ यत्र तत्र फल फूल रहे हैं।चतुर्थ विकास पुरुष हैं श्री दूध नाथ तिवारी जो भाई पट्टी अर्थात् भैया पट्टी के प्रवर्तक हैं।श्री दूध नाथ से भैया पट्टी के युग पुरुष श्री अक्षय वर तिवारी अकेले अपने एकलौते पुत्र श्री हंस नाथ तिवारी को जन्म दिया।पूर्व वर्णित विकास पुरुषों द्वारा सृजित सभी पट्टियों का अजस्र धारावत अनवरत विकास हो रहा है।महापुरुष श्री हंसनाथ तिवारी ने अपने अमल धवल वंश को आगे बढ़ाते हुए तीन पुत्र रत्नों द्वारा विकास में योगदान दिया।इनमें से प्रथम भाई श्री राम लोचन तिवारी से श्री बलराम तिवारी और श्री रघुनंदन तिवारी हुए इन दोनों से एक एक परिवार पुरुष हुए जो क्रमशःश्री पयहारी शरण तिवारी और श्री शिवरतन तिवारी हैं।अपने समान संवर्ग अर्थात् भाई शब्द तक सीमित बंधुओं का वर्णन करना ही न्याय संगत है क्योकि यह वंश कथा नही आत्मकथा है।इन परिवार पुरुषो से संवर्गी बन्धु निम्नवत हैं:-श्री पयहारी से श्री पारस नाथ, श्री व्यास,श्री सुभाष व श्री राम प्रकाश ऊर्फ मुन्ना ऊर्फ सोखा बाबा हैं और श्री शिव रतन से श्री वशिष्ठ,श्री राम विलास,श्री उमेश व श्री दिनेश हैं।इममें से तीसरे श्री कालिका तिवारी से श्री तीर्थ राज,
श्री बृज राज व श्री भृगु नाथ हुए जिनसे समवर्गी बन्धु निम्नवत है:-श्री तीर्थ राज से श्री राम चीज,श्री सूर्य नारायण,श्री दीप नारायण व श्री राम अवतार।श्री बृज राज से श्री उदय नारायण।श्री भृगु नाथ से श्री ध्रुव नारायण व श्री रमा शंकर परिवार पुरुष हैं इनसे विकसित संवर्गीय वन्धु हैं श्री राम चीज से एकलौते श्री राम प्यारे वकील साहब;श्री सूर्य नारायण से तीन श्री राम सवारे,श्री जय प्रकाश व श्री रवि प्रकाश;श्री दीप नारायण से भी तीन श्री राम दुलारे,श्री ओम प्रकाश व श्री संतोष;श्री राम अवतार से दो श्री राम पुकार व श्री अशोक;श्री उदय नारायण से श्री प्रद्युम्न व मोटका भैया श्री राम सेवक;श्री ध्रुव नारायण से दो श्री चन्द्र प्रकाश व श्री श्री प्रकाश एवं श्री रमा शंकर उर्फ़ लाला से केवल प्रेम प्रकाश ऊर्फ बच्चू। अब हम अपने पितृ पुरुष दूसरे  भाई का वर्णन करते है जिनके वंशज में हम हैं,दूसरे भाई श्री गुददर तिवारी से श्री विन्देश्वरी तिवारी और श्री महावीर तिवारी इन दोनों से जो परिवार पुरुष हैं उनमें श्री विन्देश्वरी से श्री जगत नारायण व श्री लक्ष्मी नारायण;श्री महावीर से श्री जलेश्वर नाथ तिवारी।इनमे श्री जलेश्वर से श्री चंद्र भूषण,श्री नव नाथ,श्री अवध नाथ उर्फ अवधेश और से बिनोद कुमार।श्री लक्ष्मी नारायण से श्री रवि शंकर व श्री प्रेम शंकर।श्री जगत नारायण से श्री कृपा शंकर,श्री कृष्ण शंकर,श्री नन्द लाल व मैं गिरिजा शंकर तिवारी तिलौली ब्राह्मण के आठवें वंश में पैदा हुआ चार भाई और दो बहनों में पेट पोछना हूँ।
                                      क्रमशः

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

नत बेचें ईमान

सुरुचि सुनीति उत्तानपाद प्रेम-पाश बाधे।
रुचि-नीति मध्य राज काज जन अवराधे।।
मनभोग मनभर स्वाद हीको मान पोषक।
रुचि रसना स्वशोषक कोही माने तोषक।।
नीति अदम्य अपराजेय अडिग अनन्य।
पालक जन स्व सहित सबको करे धन्य।।
ध्रुव पथ पग की गरिमा राग-रोष हटकर।
सुकाम वाचक-प्रचारक गाथा गा सटकर।।
आज देश दोजख-स्वर्ग बिच झूले झूलना।
अनन्त दल अनन्त में सिखाते हैं जूझना।।
आम जन पक्ष-विपक्ष बिच बना हैं त्रिशंकू।
कुँवा-खाई आगे-पीछे करे काहू को कलंकू।।
साहसिक कदम उठा सिय-राम जग जान।
ईश्वर अंश जीव तो हर जन को सम मान ।।
क्रन्तिकारी कार्य से जो रखे सबका आन।
घिसे पिटे पथ पाटे जो उस पर सीना तान।।
गुन गाहक हो हम हरदम करे गुनी गन गान।
निज नयन नाना नावों नत नत बेचें ईमान।।

रविवार, 31 मई 2015

मनमाफिक फल लेते धीर वीर

परित हरित मणि पाने को हम
कल्पित करते पन्थ अनेक।
आशा प्रत्याशा के बन्धन बध
लक्ष्य बदलते प्रतिपल भेक।।
हर हार जित से बोझिल जन मन
भूल जाय बिधि अमिट लेख।
शाम सा ढलते रहते उलझ उलझ
जीवन मेले के नित नव खेल।।
छोटी मोटी असफलताओं से सूरमा
स्वं वा स्वजन को क्यों कोस।
असफलता बड़ी सफलता द्योतक भी
जह तालमेल हो जोश होश।।
पद प्रतिष्ठा परिणाम प्रबल परमात्मा पूरे
कर्तव्य पथ ही जब हो लगन।
तू ईश अंश चित सबल मन बड़ा कदम
तब सफलता दासी चूमे चरन।।
भूत भूल वर्तमान बल भविष्य बना वीर
पीड़ा जो भूत से उसे  दो चीर।
मन मसोज स्व पर कोसते केवल कायर
मनमाफिक फल लेते धीर वीर।।
कमठ पीठ सा कर दिल दिमाग मजबूत
जल थल नभ गामी बहुआयामी।
निज प्रतिभा ही है अनमोल मणि जग में
मणि किरण बल बन सदपथगामी।।
चित शांत सदा कदम प्रतिष्ठित पथ पर
ध्वज फहरे लहरे हर पल।
गम समन सदा कर्म धर्म वर्म के मर्म पर
निज परचम चमके हर थल।।
होता वही जो होना है
परिणाम खरा सोना है।
कहते कहते कायर है
मार्ग बनाते सायर हैं।।

मंगलवार, 26 मई 2015

प्रश्न

हर क्षेत्र विकास भाल चूमे प्रश्न कर्ता का।
पथ दर्शक हैं रवि चन्द्र निज पथ भर्ता का।
सहज सरल प्रश्न उलझ जाते हैं जहाँ।
कठिन जटिल प्रश्न सुलझ जाते हैं वहाँ।।
जीवन पथ प्रश्न रथ सवार जन इस जहाँ।
लक्ष्य फल कर्म बल तोड़ लाते सदा यहाँ।।
ज्ञानी अज्ञानी अज्ञानी ज्ञानी हो जाते कब।
ज्ञात अज्ञात प्रश्नजात नवगति पाते जब।।
जीवन पथ तुतलाते हकलाते आगे बढ़ते।
बक बक कर सम्भावनागत मार्ग पा जाते।।
सीधी सी साधी सी सौंधी सी सत सवाल।
तीखी मिर्ची सी मचा देती है बहुत बवाल।।
सिंहासन हिला प्रश्न कही रचते इतिहास।
कराते हैं ये वही जन मन मन्दिर निवास।।
सोते जागते उठते बैठते हिलते डुलते प्रश्न
मानव संग जटिल जीवन जीते हैं प्रश्न।।
प्रश्न पर चढ़ मूढ़ व्यमूढ़ बन जाय साथी।
पर हल पा निज प्रश्नों का होते महारथी।।
क्या क्यों कैसे उलझा दे ऐसे  तैसे नित।
वाह ये कैसे जीवन तार सुलझाये जित।।
कहाँ कब कौन जब तोड़तें निज मौन।
ठौर ठौर गौर गौर हल होते कौन कौन।।
साहित्य सेवा जनसेवा निज मेवा हित।
प्रश्नों का लगाना ही होगा झड़ी नित।।
किसका किसकी किसके इसके उसके।
पाव पीछे न कभी किसी भय से खिसके।।
आश्रय अमित का मनोरम मनोबल ये।
नवजात जात जीवन का बलधाम हैं ये।।
यक्ष भी ये रक्ष भी ये समक्ष भी हैं ये।
समर्थ जन हेतु सहज सरल साध्य ये।।
समस्या समाधान सावधान से सवाल।
सज्जन साधुजन सदसमागम से सुहाल।।
बिन्दु-सिन्धु हैं प्रश्न विचारे।
मति गति सुरति कहत रत नारे।।
श्रोता-वक्ता ज्ञानी सहारे।
सूरज प्रश्न अज्ञान घन वारे।।

शुक्रवार, 8 मई 2015

आबो हवा सबब है सगरा हमरा द्वारे द्वारे

माया जगत भृंग इंसा आस सुवास सहारे।
फौलादी हौसला बल हर दुर्निवार निवारे।।
काम कुसुम तजि काम निरत हो जा सारे।
मन्दिर मस्जिद गिरजाघर आस्था गुरूद्वारे
देख पेख निज पर कर्म भाग्य मन मा सोच।
हैं हम अजूबे जग अजब अजायबघर पोच।
कर्म धर्म जीवन अंगी अंग भंग न हो लोच।
प्रकृति नटी अगनित नामी हैअजब कोच।। पाथर नर पूजित अपूजित अभिधाने थाने।
मगता दाता सजीव निर्जीव मूरत मनआने।
महा मोह तम आच्छादित जाने अनजाने।
पारस प्रभु परस दरस सरस हो जीवन माने आबो हवा सबब है सगरा हमरा द्वारे द्वारे।
मीठा खारा खुशबू बदबू रूप न्यारे न्यारे।।
जग जानो जव जू जात जवास पावस जारे।
बिन जगे भ्रम ना मिटे मिट जाय ख्वाब सारे

गुरुवार, 7 मई 2015

दिशा

अति हितकारी दिशा दशा देश देव  होते
तय करना नित नूतन लक्ष्य कदम सजोते।
देश दिशा नव कीर्ति ले संसार में फैले
युवान महान हो भारत गान गावे शैले शैले
पर मन्दिर मस्जिद गिरजाघर बिक जाते
पूज्य स्थानों पर भी हैं घाती घात लगाते।
निज में रम गम दूजो को नित नव दे जाते
रम में रम ज्ञान मान का पाठ पर को पढाते
अद्भुत
हैं हम हम जो चाहे कर जाते
लूट तन्त्र है लोकतंत्र यह सद वाक्य रटाते
ऋषि महर्षि हाजी पीर औलिया गाथा गाते
सब धर्मो के आदर्शों को कहते सुनते पाते।
पुरुषोत्तम का देश हमारा हम हैं इटलाते
गीता ने दी दिशा देश धर्म कोहैं नित गाते।
तय कर निश्चित दिशा दिया देवों ने हमको
कृतज्ञ हैं देश सदा पूजे प्रतिपल उनको।।
पूजित होने की चाह आह दे आज सबको
दिशाहीन से दिशाज्ञान मिले कैसे हमको।
खुद ही करो निर्माण खुद का अब तो
दिशा बोध हित शोध करो कर्म भी तो।
बढ़ा कदम निज सोच समझ से हो अभय।।
सद पथ से ही होगी निश्चित ही सद जय।।

दे भुक्ति मुक्ति हैं जग तारन तरन

सदा साथ कमलाकर किंकर।
कुन्दकली सम वरदंत मनोहर।।
मति विमला सबला विद्या वर।
सुमिरत मोह कोह हटे सत्वर।।
दांत पीस कर मुष्टिका प्रहार।
रन छोड़े शत्रु दांत खट्टे कर।।
दांत से ही सेहत सवरती सही।
मुंह दांत नहीं तो पेटआंत नहीं।।
इन्द्रिय हैं हम सक्रिय हैं संसार।रहा
दांत कटी रोटी कर्ण साहै धार।।
आकाश वृत्ति ही जब जग जात।
गिनों क्यों दान बछिया के दांत।।
सफेद पोशों का व्यवहार यहाँ।
हाथी दांत सा ही धोखा जहाँ।।
कर्म धर्म गीता मर्म है बसाना।
जहाँ में जहाँ तक जगह पाना।।
बुलन्दियो की इमारतें उठाना।
रह जाय दंग दुश्मन व जमाना।।
युगों युगों से सबने देखा जाना।
अमितों का दातों अंगुली दबाना।।
दुःख दर्द दांत तालू में जमना।
मृग मरीचिका है दिवा सपना।।
ज्ञान अनुभव जीवन में भरना।
देगा सब दूध  दांत का टूटना।।
द्वितीय बचपन जीवन में आता।
इंसा को तब है कुछ नहीं भाता।।
आँख कान नाक दांत त्वचा गुन।
हो जाते हैं जब सभी अंग सुन्न।।
पवन तनय संकट हरन सुमिरन।
दे भुक्ति मुक्ति हैं जग तारन तरन।।